Issue: November, 2024
Bharat Ratan Baba Saheb Dr. Bhim Rao Ambedkar (14th April 1891 to 6th December,1956)
Constitution is not a mere lawyers document, it is a vehicle of Life, and its spirit is always the spirit of Age. On 26th Jan,1950, the country was going to enter a life of contradictions. In politics we will have equality and in social and economic life we will have inequality. In politics we will be recognizing the principle of one man one vote and one vote one value.
Bharat Ratan Baba Saheb Dr. Bhim Rao Ambedkar (14th April 1891 to 6th December,1956)
In our social and economic life, we shall by reason of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value. How long shall we continue to live this life of contradictions? How long shall we continue to deny equality in our social and economic life? If we continue to deny it for long, we will do so only by putting our political democracy in peril-Dr. B. R. Ambedkar.
Former Editor of “Bheem Patrika”
– Dr. B. R. Ambedkar
जब कोई कहता है कि वह अनुसूचित जाति का है तो उससे नफ़रत शुरू हो जाती है, इन्हीं नफ़रत करने वालों की काली करतूत देखिए.
(1) आदि धर्मी (2) वाल्मीकि, चुहड़ा, भंगी (3) बंगाली (4) बरड़, बुरड़, बेरड़ (5) बटबाल (6) बौरिया, बावेरिया (7) बाज़ीगर ( 8 ) भंजड़ा (9) चमार, जटिया चमार, रैहगर, रैगर, रामदासी, रविदासी (10) चनाल (11) दागी (12) दरैण (13) देहा, धाया, धेईआ (14) धानक ( 15 ) धोगड़ी, धानगड़ी, सिग्गी (16) डुमना, महाश, डोम (17) गगरा (18) गंधीला, गांदिल, गोनडोला (19) कबीरपंथी, जोलाहा (20) खटीक (21) कोरी, कोली (22) मारिजा, मारीचा (23) मज़हबी (24) मेघ (25) नट (26) ओड (27) पासी (28) पेरना (29) फिरेरा (30) सनहाए (31) सनहाल (32) सांसीं, भेडकुट, मनेश (33) सनसोई (34) सापेला (35) सारेड़ा (36) सिकलीगर (37) सिरकीबंद.
उपरोक्त दर्ज जातियों में से किसी जाति का नकली प्रमाण-पत्र बनवा कर पंजाब में 50 से ज्यादा सवर्णों ने आरक्षित सरकारी नैकरियां प्राप्त की. ऐसे धोखेबाज़ों में से कुछेक तो अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर भी हो गए.
इन धोखेबाज़ों की पड़ताल हो रही है. कह नहीं सकते कि उसका क्या नतीजा निकलेगा.
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच खूनी – टकराव रुक नहीं रहा, हालांकि भारत के गृहमंत्री मणिपुर में तीन दिन के दौरे पर रह भी चुके हैं.
उनका तर्क है कि कुकी समुदाय के खिलाफ अभियान चलाने वाले संगठन के लोग भी शांति समिति में शामिल किए गए हैं. वहीं कुकी समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि उनकी सहमति के बिना उन्हें शांति समिति में शामिल किया गया है. बरहाल, कुल मिलाकर मणिपुर का यह संघर्ष राष्ट्र के संघीय ढांचे की भावना के विपरीत दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा. केन्द्र सरकार की भी कोशिश होनी चाहिए कि राज्यपाल के नेतृत्व वाली समिति के 51 सदस्यों को लेकर सभी पक्षों की सहमति बने. वहीं कुकी समुदाय के लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार हस्तक्षेप करके वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करे. कुकी समुदाय के विरोध के मूल में एक आरोप यह भी है कि उनके खिलाफ अभियान चलाने वाले नागरिक समूह के सदस्यों को शांति समिति में शामिल किया गया है.
दरअसल, मणिपुर में हुए हालिया संघर्ष के मूल में मैतेई समुदाय को एस.टी. का दर्जा दिया जाना बताया जाता है. इस निर्णय के विरोध स्वरूप उपजे विवाद के चलते ही राज्य हिंसा की चपेट में आ गया. दरअसल, करीब 53 फीसदी आबादी वाले मैतेई समुदाय के पास राज्य में महज 10 फीसदी ज़मीन है, जबकि 40 फीसदी आबादी वाले कुकी समुदाय के पास 90 फीसदी ज़मीन है. यह असंतुलन अकसर दोनों समुदायों में टकराव का कारण बनता रहा है. यह पहले से ही कयास लगाए जा रहे थे कि मैतेई समुदाय को एस.टी. का दर्जा दिए जाने के बाद राज्य में अशांति का माहौल बन सकता है. कालांतर ऐसा हुआ भी. सतही तौर पर राज्य में हिंसक वारदातें थमी नज़र आती हैं, लेकिन इस विवाद का पटाक्षेप जल्दी हो पाएगा, ऐसे आसार नज़र नहीं आते. आबादी और ज़मीन के असंतुलन का विवाद तुरत-फुरत थमता नज़र नहीं आता है, क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में इस अनुपात में बड़ा परिवर्तन संभव भी नहीं है. केन्द्रीय गृहमंत्री के हस्तक्षेप व सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाने के बावजूद सतही शांति तो नज़र आती है. सवाल है कि यह स्थिति कब तक कायम रह सकती है. वह भी जब मैतेई समुदाय आरक्षण को अपने जीवन के लिए ज़रूरी बता रहा है तो आदिवासी समुदाय इसे क्षेत्र में असंतुलन पैदा करने वाला बता रहा है. कुकी समुदाय इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताता है. ज़ाहिर है कि इस जटिल समस्या का समाधान दोनों पक्षों के बीच विश्वास बढ़ाकर ही किया जा सकता है.
समाचार-पत्रों में प्रायः मन्दिरों में जमा – सोने, चांदी, आभूषणों और नकद धन के समाचार छपते रहते हैं.
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रशासन प्रसिद्ध तुलजा भवानी मन्दिर में चढ़ावे की गणना कर रहा है और उसने एक सप्ताह में 207 किलोग्राम सोना और सोने के आभूषण, 1,280 किलोग्राम चांदी और चांदी के आभूषण और 354 हीरे दर्ज किए हैं.
सरकारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली. लेखा महानियंत्रतक (सी.जी.ए.) ने केन्द्र सरकार के 2022-23 के राजस्व – व्यय का आंकड़ा जारी करते हुए कहा कि मूल्य के हिसाब से राजकोषीय घाटा 17,33,131 करोड़ रुपये (अस्थायी ) रहा है. यह बजट के संशोधित अनुमान से कुछ कम है.
सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए बाज़ार से कर्ज़ लेती है. सी. जी. ए. ने कहा कि सरकार की प्राप्तियां 2022-23 में 24.56 लाख करोड़ रुपये रहीं. यह 2022-23 के लिए कुल प्राप्तियों के संशोधित अनुमान का 101 फीसद है. इसमें 20.97 लाख करोड़ रुपये का कर राजस्व, 2.86 लाख करोड़ रुपये कर गैर-कर राजस्व और 72,187 करोड़ रुपये की गैर – ऋण पूंजी प्राप्तियां हैं. गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों में कर्ज की वसूली और विभिन्न पूंजी प्राप्ति शामिल हैं.
हम ने देश की माली हालत के कुछेक संकेत दिए हैं. क्या मन्दिरों व अन्य धर्म स्थानों पर जमा- धन दौलत जनता की कल्याण और देश के विकास में नहीं लगाया जा सकता? इस पर आवाज़ उठानी चाहिए.
संविधानद्ध सभा में ‘समान सिविल संहिता’ पर लंबी बहस हुई. बाबा साहब अंबेडकर “समान सिविल कानून बनाने और उसे लागू करने के हक में थे. किन्तु संविधान सभा के सदस्य उनके विचार से सहमत नहीं थे. ‘
इसलिए संविधान में निम्नलिखित अनुच्छेद दर्ज किया गया :
“अनुच्छेद 44 : राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता” प्राप्त करने का प्रयास करेगा.
भारत के निधि आयोग ने 30 जून, 2023 तक लोगों से राय मांगी है कि कानून बनाया जाए या नहीं. हिन्दू राष्ट्रवादी समान सिविल कानून बनने के लिए वर्षों से मांग कर रहे हैं. अब यह मामला विधि आयोग के हवाले कर दिया गया है.
पहला: रेप केस में 23 मई, 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अजीब आदेश दिया. लखनऊ यूनिवर्सिटी के ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष से कहा : वे पीड़िता की कुंडली देखें और बताएं कि वो मांगलिक है या नहीं, इसके बाद ही आरोपी की ज़मानत पर फैसला होगा.
मामला चर्चा में आते ही सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया. शनिवार को छुट्टी के दिन स्पैशल बेंच बैठी, जिसने आदेश पर रोक लगा दी. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पंकज मित्थल ने कहा कि आपराधिक केस का ज्योतिष से कोई लेना- देना नहीं. हमें समझ नहीं आता ज्योतिष के पहलू पर विचार को क्यों कहा गया.
आरोपी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर है. उसने हाईकोर्ट में ज़मानत अर्जी लगाई है. पीड़िता ने हाईकोर्ट को बताया कि आरोपी ने शारीरिक संबंध बनाए, पर शादी नहीं की. आरोपी ने तर्क दिया कि लड़की मांगलिक है, इसलिए शादी नहीं कर सकता.
दूसरा: भाजपा नेता की पुत्री का दूसरे धर्म के युवक के साथ तय विवाह का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया.
हम देश में सभी नागरिकों के लिए समान सिविल (दीवानी ) कानून बनाने और लागू करने के हक में है. इसे बनाना – न बनाना हिन्दू राष्ट्रवादियों की मर्जी पर नहीं छोड़ना चाहिए.
> एल. आर. बाली
Scriptures and Modernism
Sovereignty of scriptures of all religions must come to an end if we want to have a united integrated modern India – B.R. Ambedkar
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
As everyone knows it, that India is passing through a critical time at the societal level. The difference between majority and minority is increasing day by day. The ‘Unity in Diversity’ lost significance. Politicians irrespective of political affiliation are trying to divide the society for their political ends. Judicial system, to some extent, is failing to restore law and order in the country.
Democracy is just on paper; the rulers are dictators who want to rule the country by hooks and by crooks. Everyday there are riots, loot, and arson on the roads. Both Hindus and Muslims are thirsty for each other blood. It is observed that religious as well as political leaders from both the communities are igniting the fire. In that case, India would remain disintegrated and one day the Parliamentary democracy would collapse and it would turn India a veritable hell. In this situation, both warring communities would perish.
Scholars and Researchers are feeling suffocated in India to make a non-religious comment for fearing a threat to their life. America, China and Britain in terms of technological advancement are on a path of progress and growth constantly but India is retarding due to suffocation of independent scholarship & freedom of speech.
David Resnik, Bioethicist, very well written, ” Freedom of speech is one of science’s most important norms. People must have freedom of thought and speech to generate different points of views. Progress cannot occur if the majority uses its power to supress minority view -points. Placing restrictions on communication can alter scientific work and can have a negative impact on the research environment. Freedom of speech is important for educating & informing the public about scientific issues with policy implications. People need to hear different perspective to develop well-informed & cogent opinions about policy issues.
भारत में विविधता में एकता का महत्व कम हो गया है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि भारत सामाजिक स्तर पर नाजुक दौर से गुजर रहा है। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच का अंतर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। ‘अनेकता में एकता’ का महत्व खत्म हो गया। राजनीतिक संबद्धता के बावजूद राजनेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए समाज को विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं। न्यायिक व्यवस्था कुछ हद तक देश में कानून-व्यवस्था बहाल करने में विफल हो रही है। लोकतंत्र सिर्फ कागजों पर है, शासक तानाशाह हैं जो देश पर हुकूमत करना चाहते हैं। आए दिन सड़कों पर दंगे, लूट और आगजनी हो रही है. हिंदू और मुसलमान दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं। ऐसा देखा गया है कि दोनों समुदायों के धार्मिक और राजनीतिक नेता आग भड़का रहे हैं। उस स्थिति में, भारत विखंडित रहेगा और एक दिन संसदीय लोकतंत्र ध्वस्त हो जायेगा और भारत सचमुच नरक बन जायेगा। इस स्थिति में, दोनों युद्धरत समुदाय नष्ट हो जायेंगे। तकनीकी उन्नति के मामले में अमेरिका, चीन और ब्रिटेन लगातार प्रगति और विकास के पथ पर हैं, लेकिन भारत स्वतंत्र विद्वता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की घुटन के कारण पिछड़ रहा है।डेविड रेसनिक, बायोएथिसिस्ट, ने बहुत अच्छी तरह से लिखा है, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण मानदंडों में से एक है। लोगों को विभिन्न दृष्टिकोण उत्पन्न करने के लिए विचार और भाषण की स्वतंत्रता होनी चाहिए। यदि बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों को दबाने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं तो प्रगति नहीं हो सकती है दृष्टिकोण। संचार पर प्रतिबंध लगाने से वैज्ञानिक कार्य में बदलाव आ सकता है और अनुसंधान के माहौल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। नीतिगत निहितार्थों के साथ वैज्ञानिक मुद्दों के बारे में जनता को शिक्षित करने और सूचित करने के लिए भाषण की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। नीतिगत मुद्दों के बारे में सूचित एवं ठोस राय।
(अनुवाद बीआर भारद्वाज द्वारा)
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
Since civilisation, we come to read in the history books about different religions and faiths. Disciples started building temples across the world to
pay tribute to their respective religious gurus, saints.
Tathagata Gautama Buddha, Jesus Christ, Guru Nanak, Prophet Mohammed left their sermons and teachings for the followers. After their
death, the followers starting writing books about the history of their life. From these books we come to know one common feature among all these founder that is Simplicity. They all lived a life in poverty. They all bore unbearable onslaught on them. They were never seen participating or collaborating in political or economic affairs of the state despite Kings and Emperors offered them the seat of power.
The time has changed. The followers of different religions and faiths are found polluting the teachings of simple and honest Guru as described above. Now a days, the majority of the so-called Baba are found collaborating with political parties and they receive unbridled political patronage from political leaders for their own selfish ends. Their opulent style show that they are making religion a commerce. They are found playing a crucial role in making and unmaking political leaders and political parties. They are found traveling by charter flights and staying in seven-star hotels.
The end result of this pollution of religions and faiths is to destroy the scientific temper of the general populace. The end result of this pollution is creating a group of loafers who burn, loot and demolish the site of opposite religion and faith in order to glorify their own religion and faith. In the past 20 years, we found that the role of the state in promoting hatred, jealousy and violence is manifold higher in collaboration with Baba’s`.
With burgeoning of religious hatred among us, we, as India’s, are inciting the rule of eye for eye, which would make all of us blind one day.
If leaders, followers and Baba do not stop this pollution and commercialization of religions and faiths India would lose religious sacredness and soon become a country in Asia a country of religiosity profanity.
धार्मिक कट्टरता के परिणाम
सभ्यता के समय से ही हम इतिहास की किताबों में विभिन्न धर्मों और आस्थाओं के बारे में पढ़ते आए हैं। शिष्यों ने अपने-अपने धार्मिक गुरुओं, संतों को श्रद्धांजलि देने के लिए दुनिया भर में मंदिरों का निर्माण शुरू कर दिया।
तथागत गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, गुरु नानक, पैगंबर मोहम्मद ने अनुयायियों के लिए अपने उपदेश और शिक्षाएँ छोड़ीं। उनकी मृत्यु के बाद, अनुयायियों ने उनके जीवन के इतिहास के बारे में किताबें लिखना शुरू कर दिया। इन पुस्तकों से हमें इन सभी संस्थापकों में एक सामान्य विशेषता का पता चलता है और वह है सरलता। वे सभी गरीबी में जीवन जीते थे। उन सभी ने उन पर असहनीय हमला सहा। राजाओं और सम्राटों द्वारा उन्हें सत्ता की कुर्सी की पेशकश के बावजूद उन्हें कभी भी राज्य के राजनीतिक या आर्थिक मामलों में भाग लेते या सहयोग करते नहीं देखा गया।
समय बदल गया है. जैसा कि ऊपर वर्णित है, विभिन्न धर्मों और आस्थाओं के अनुयायी सरल और ईमानदार गुरु की शिक्षाओं को प्रदूषित करते पाए जाते हैं। आजकल, अधिकांश तथाकथित बाबा राजनीतिक दलों के साथ गठजोड़ करते पाए जाते हैं। उनकी वैभवशाली शैली से पता चलता है कि वे धर्म को व्यापार बना रहे हैं। वे राजनीतिक नेताओं और राजनीतिक दलों को बनाने और बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते पाए जाते हैं। वे चार्टर उड़ानों से यात्रा करते और सात सितारा होटलों में ठहरते पाए जाते हैं।
धर्मों और आस्थाओं के इस प्रदूषण का अंतिम परिणाम आम जनता के वैज्ञानिक स्वभाव को नष्ट करना है। इस प्रदूषण का अंतिम परिणाम आवारा लोगों का एक समूह तैयार करना है जो अपने धर्म और आस्था का महिमामंडन करने के लिए विपरीत धर्म और आस्था के स्थलों को जलाते हैं, लूटते हैं और ध्वस्त करते हैं। पिछले 20 वर्षों में हमने पाया कि घृणा, ईर्ष्या और हिंसा को बढ़ावा देने में राज्य की भूमिका कई गुना अधिक है।
बढ़ती धार्मिक नफरत के साथ, हम, भारतवासी, आंख के बदले आंख के नियम को बढ़ावा दे रहे हैं, जो एक दिन हम सभी को अंधा बना देगा। नेता, अनुयायी और बाबा इस प्रदूषण और धर्मों और आस्थाओं के व्यावसायीकरण को नहीं रोकते हैं तो भारत धार्मिक पवित्रता खो देगा और जल्द ही एशिया में धार्मिक अपवित्रता का देश बन जाएगा ।
(अनुवाद बीआर भारद्वाज द्वारा)
Among the fiercest criticisms of Gandhi was contained in a relatively early assessment of his career. S.K. Majumdar, who never met the Mahatma, is strikingly caustic about the man in his Jinnah and Gandhi: Their Role in India`s Quest for freedom (1966). Majumdar opens by conceding that Gandhi was sone of the greatest men who ever lived, but this tribute is soon followed by a negative reference to his “boastful pride”, to his “wishing to set up a Holy Gandhism Empire in India and to be its Poe, and the accusation that the was a ‘veritable destroyer who revelled in destruction”.
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का आगमन दिवस 27 अक्टूबर को अंबेडकर भवन, डाॅ. अंबेडकर मार्ग, जालंधर में अंबेडकर भवन ट्रस्ट द्वारा एक निःशुल्क चिकित्सा जांच शिविर का आयोजन करके बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया गया। निःशुल्क चिकित्सा जांच शिविर में अत्यंत अनुभवी चिकित्सक डाॅ. चरणजीत सिंह एमएस ऑर्थो, पूर्व एसएमओ; डॉ. चंद्र प्रकाश एमबीबीएस, पूर्व एसएमओ; डॉ. अमरदीप सिंह एमबीबीएस; डॉ. नवदीप एमबीबीएस और डॉ. जैस्मीन एमडी (मेडिसिन) ने मरीजों की मुफ्त जांच की और उनको मुफ्त दवाएं प्रदान कीं। मरण रह क 27 अटबर 1951 को बाबा साहब डा. भीमराव अबडकर जालधर म उसी ान पर आय थ और उहन लाख लोग को
सबोधत कया था।
– BR Bhardwaj
Surendra Ajnat (1983) in his book “बुद्धधम्मः भ्रान्ति निवारणं” beautifully described Buddha`s teachings “The great man Buddha has said: Kalamo, do not go after what has been ingrained in your mind due to repeated hearing, nor the things coming from forefathers, nor rumours. Do not go after what is written in religious scriptures, nor do you go after doubtful and suspicious things. Do not go after things that are said to be self-evident, nor do
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
From various field studies we find that Indian society has never been a creative and liberal society despite Article 15A(h), which says, “develop the scientific temper, humanism and the spirit of inquiry & reform”. The erosion of Indian society suggests that not a single leader or political party have ever bothered to implement this article of the Indian constitution to safeguard Indian society from further degeneration.
The degermation of Indian society began with fake Brahmin priests who for their livelihood hoodwink the innocent people. These fake Brahmin priests invented various miracles and promoted superstitions, exorcism and religious bigotry and made it a part of the superstructure. It is a fact that in the last few centuries fake Brahmin priest blossomed and monopolized over religious congregations and temple economy.
In recent times, a new trend has emerged in the Indian society. Fake non-brahmin priests have jumped into this lucrative profession when they see “wealth, power and prestige” and are found emulating fake Brahmin`s priests dirty and immoral tactics and looting innocent citizens in the name of God. From the threshold of Hindu temples, fake Brahmin and non -Brahmin priests spread different kind of lies, miracles and superstition.
Fake Brahmin and non-Brahmin priests indulge in several kinds of criminal and immoral activities such as rape, looting innocent people in the name of God, snatching their fundamental rights. Treachery, revenge, cruelty, impudence, stealing, lying, profanity, debauchery, nastiness and intemperance, are said to have their forte. Boozers are becoming disciples of liquor drinking Baba and Mata. Smoking has become a fashion among the fake Baba and Mata. In the absence of jobs in the market, unemployed educated have been becoming fake Baba and there is hardly any law in the country to stop them.
We have become a laughing stock at the international arena. Europeans when see Indian Fake Baba and Mata performing horrific miracles on the social media, they say, “Indians are crazy people”. Fake Baba and Mata are retarding cultural development of India.
The role of political leaders and political parties in strengthening Brahminical system cannot be denied. The national media also promotes fake Baba and Mata while telecasting their paid religious progammes 24X7. In this scenario where rulers are found hand shaking the fake Baba and Mata for their vested interests. we can expect no substantial change in the superstructure of Indian society.
I am depressed to see educated people are also found not taking about a scientific and liberal society. I am dismayed at seeing swift degeneration of Indian society.
क्या भारत एक रचनात्मक और उदार समाज बन सकता है?
विभिन्न क्षेत्रीय अध्ययनों से हम पाते हैं कि अनुच्छेद 15ए(एच) के बावजूद भारतीय समाज कभी भी रचनात्मक और उदार समाज नहीं रहा है, जो कहता है, “वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करें”।
भारतीय समाज के क्षरण से पता चलता है कि किसी भी नेता या राजनीतिक दल ने भारतीय समाज को और अधिक पतन से बचाने के लिए भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद को लागू करने की जहमत नहीं उठाई है।
भारतीय समाज का पतन नकली ब्राह्मण पुजारियों से शुरू हुआ जो अपनी आजीविका के लिए निर्दोष लोगों को धोखा देते थे। इन नकली ब्राह्मण पुजारियों ने विभिन्न चमत्कारों का आविष्कार किया और अंधविश्वास, झाड़-फूंक और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया और इसे अधिरचना का हिस्सा बना दिया। यह एक तथ्य है कि पिछली कुछ शताब्दियों में नकली ब्राह्मण पुजारी फले-फूले और उन्होंने धार्मिक सभाओं और मंदिर की अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार जमा लिया।
भारतीय समाज का पतन नकली ब्राह्मण पुजारियों से शुरू हुआ जो अपनी आजीविका के लिए निर्दोष लोगों को धोखा देते थे। इन नकली ब्राह्मण पुजारियों ने विभिन्न चमत्कारों का आविष्कार किया और अंधविश्वास, झाड़-फूंक और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया और इसे अधिरचना का हिस्सा बना दिया। यह एक तथ्य है कि पिछली कुछ शताब्दियों में नकली ब्राह्मण पुजारी फले-फूले और उन्होंने धार्मिक सभाओं और मंदिर की अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार जमा लिया।
नकली ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण पुजारी कई तरह की आपराधिक और अनैतिक गतिविधियों में लिप्त होते हैं जैसे बलात्कार, भगवान के नाम पर निर्दोष लोगों को लूटना, उनके मौलिक अधिकारों को छीनना। कहा जाता है कि विश्वासघात, प्रतिशोध, क्रूरता, निर्लज्जता, चोरी, झूठ, अपवित्रता, व्यभिचार, दुष्टता और असंयम उनकी विशेषताएँ हैं। शराब पीने वाले बाबा और माता के शिष्य बन रहे हैं शराब पीने वाले. नकली बाबाओं और माता-पिता के बीच धूम्रपान एक फैशन बन गया है। बाजार में नौकरियों के अभाव में पढ़े-लिखे बेरोजगार नकली बाबा बनते जा रहे हैं और इन्हें रोकने के लिए देश में शायद ही कोई कानून है।
हम अंतरराष्ट्रीय मंच पर हंसी का पात्र बन गए हैं।’ यूरोपीय लोग जब सोशल मीडिया पर भारतीय नकली बाबाओं और माता को भयानक चमत्कार करते देखते हैं तो कहते हैं, “भारतीय पागल लोग हैं”। नकली बाबा और माता भारत के सांस्कृतिक विकास को अवरुद्ध कर रहे हैं।
ब्राह्मणवादी व्यवस्था को मजबूत करने में राजनीतिक नेताओं और राजनीतिक दलों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय मीडिया भी नकली बाबाओं और माता को बढ़ावा देता है और उनके भुगतान किए गए धार्मिक कार्यक्रमों को 24X7 प्रसारित करता है। इस परिदृश्य में जहां शासक अपने निहित स्वार्थों के लिए नकली बाबा और माता का हाथ थामते पाए जाते हैं। हम भारतीय समाज की अधिरचना में कोई खास बदलाव की उम्मीद नहीं कर सकते।
मुझे यह देखकर निराशा होती है कि पढ़े-लिखे लोग भी वैज्ञानिक और उदार समाज के बारे में नहीं सोचते हैं। मैं भारतीय समाज में तेजी से हो रहे पतन को देखकर निराश हूं।
(हिंदी अनुवाद श्री बी.आर. भारद्वाज)
– Dr. Surendra Ajnat, MA, PhD
Dr. Ambedkar struggled all his life for the betterment of Depressed Classes, now called Scheduled Castes (SCs). He attended Round Table conference in London to achieve his objectives vehemently and argued for the separate electorate for the Depressed Classes.
इंकलाबी कवि श्री. गुरदास राम आलम का जन्म 29 अक्टूबर, 1912 को जिला जालंधर के गांव बुंदाला मंजकी में हुआ था। उनके पिता श्री उमरा राम और माता श्रीमती जियोनी परिवार के लिए बहुत ईमानदारी से मेहनत कर रहे थे।
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
Prime Minister Narendra Modi is again in the parliament with the same tempo to confuse the public by his lies. He is again there to polarize the society on religion basis. He is again there to brag his achievements sans proper data. He is again there to split other political parties. He is again there to suffocate democratic institutes. He is again there to punish opposition leaders. He is again there to dig out old issues like Emergency to make his party strong in the parliament. He is again there to promote religious superstition. He is again there to support RSS and its affiliates. He is again there to celebrate Yoga in Kashmir to send a loud and clear message that everything is normal in Kashmir. It does not matter how many civilians died on the day of his oath-ceremony as Prime Minister of India.
What is going to happen now. Strong opposition would fight in the Parliament and raise public issues such as Unemployment, sky-rocketing inflation, farmer issues, and some of international issues concerning the security and integrity of the country. The voice of the opposition will be stifled by Lok Sabha speaker Om Birla. The opposition leaders will get hardly a minute to speak when Om Birla would chide them like a school teacher and demoralize them.
In this process, who is going to suffer, it is the public which would suffer at large. Disruption in the parliament from time to time would create a chaos and the blame game will go on. The BJP would attack opposition by blaming that the opposition is not playing a constructive role and the Godi Media would amplify it among the public.
It is unpredictable how Nitish and Naidu would behave in future. By not pressing for Lok Sabha speaker or deputy speaker for their party it is clear that both leaders are interested in money for their state.
Whether the Modi government is safe or not, it is for sure that the Modi and his party would further create a wedge between Hindus and Muslims. The degree of societal division would be deeper. The poison of religious divide would further enfeeble the society.
Under Modi `s outlook India would never become a super power because the Modi and RSS are trying hard to destroy scientific temper. The school text books are being filled with poison by RSS parcharaks. In 10 years, the reduction in numbers of PhD students as compared to China shows that the Modi government is least bothered about the promotion of education.
The constitution for the Modi is a merely a book. In his political career he might have not read the constitution therefore the Modi has no respect for the constitution. He is/will be using the constitution to show to the Dalits that he is an ardent follower of Baba Saheb Dr. B.R. Ambedkar but he is not.
In India, Mughals were completely eliminated by the Britishers in 1803. Dictators like Adolf Hitler, Joseph Stalin, Mao Zedong, Benito Mussolini Sadam Hussian were completely eliminated by western powers. Therefore, a Dictator has to be eliminated completely in order to save the country. It is hoped that the people of India in 2029 would exercise their wisdom to show the gate to the dictator like Modi not only for their safety and security but for the future of their children.
वो पेड़ जिस की छाँव में कटी थी उम्र गाँव में
मैं चूम चूम थक गया मगर ये दिल भरा नहीं
-हम्माद नियाज़ी
On 06 July, 2023, a telephone call from Baldev Raj Bhardwaj, our respected brother-in -law, made a thundering jolt to my body. He told, “Papaji is no more”. He also told that the dead body was taken to the mortuary since my brother, sister from Canada had to reach to see the face of our beloved, respected father for the last time.
Family Photo: From Left to Right: daughters Shakuntla Nagar, Sunita Bhardwaj, Sujata Sallan, (father) Lahori Ram Balley, (Mother) Ajit Kuar Balley, elder son Rahul Kumar Balley, younger son Anand Kumar Balley.
Our respected mother late Ajit Kaur Balley stood by my father through thick and thin. My father had immense love for my mother. They were compatible companions. Our mother was a pious lady who not only took care of children but also participated in social, political activities of Republican Party of India (RPI). Three daughters namely Shakuntla Nagar, Sunita Bhardwaj and Sujata Sallan equally contributed to social, political life of father.
Out of love, my brother Anand Kumar Balley and My sister Sujata Sallan and her husband Mohinder Sallan used to bring shirts, warm jackets, socks for him from Canada. My elder sister Shakuntla Nagar and Sunita Bhardwaj also used to bring gifts on Father`s Day.
Our father faced tremendous hardships and struggles. Our father was a fearless leader. He was a fiery orator. He was an intelligent revolutionary. He lived dangerously. He survived by a bullet during the Talhan village agitation where a Dalit woman was raped by a Jat Sikh. He was always ready to help socially oppressed and improvised people. He was a proponent of pro-working-class measures and opponent of monopoly practices. He was a brilliant skilled & disciplined strategist & organizer. He was peerless in his public dealings. He detested betrayal uncompromisingly. He made a brief foray in state politics but unsuccessful. He never dithered despite physical risk. His inspired people. He built a strong team through his vision and integrity of character. He was dedicated, honest to the cause of the Ambedkar Mission. He wrote more than 200 books. Preferably, he used to publish pamphlets, the idea behind was to offer quick reading. He was one of the authors who formidably and fiercely wrote against the wickedness of Brahmanism. As Baba Saheb Dr Ambedkar said, “I hate injustice, tyranny, pompousness’ and humbug, and my hatred embraces all those who are guilty of them. I want to tell my critics that I regard my feelings of hatred as a real force.” This is what our father believed and practiced.
In his thoughtful book: Leadership: Six Studies in World Strategy, the late Henry Kissinger, President of USA wrote, the price of making history. Our father paid the price for making Dalit history in Punjab especially and in India & abroad generally. He loathed materialism. He fought only for the rights of the marginalized Dalits and worked for their upliftment. Throughout his life, he played a significant role in advocating for the rights marginalized communities. His leadership and dedication have left a lasting impact on the Dalit landscape of India.
I remember people from distant areas of Punjab used to visit him for seeking advice on social, religious and political issues. He had extraordinary charisma. He earned sobriquet as “Lion of Punjab”. He antagonized those who were trying to push the mission backward for their own self-interests. He was well -read. He worked for Ambedkar mission altruistically. He played an active role along with others in establishing exemplary institution like Ambedkar Bhawan in Jalandhar. People of Punjab are emotionally attached to this place as Baba Saheb Dr. B.R. Ambedkar visited this piece of land in 1951, later on bought by father. Our beloved father was a practicing Buddhist.
This memorial would be incomplete if I do not mention contributions of B.R. Bhardwaj. In our absence, Bhardwaj took care of our father. He stood by our father day and night. He used to shave, change his clothes sometimes. During illness, Bhardwaj never left our father alone. We are grateful to him. We are also grateful to Nirmal Bingee for taking care of our father. Dr. Charanjit Singh, brother of BR Bhardwaj was always available on phone call if any medicine or injection was required in case of illness. We are indebted to him. Blood pressure and sugar level of our father was monitored on a regular basis by our cousin Kamalsheel. We are thankful to him.
In the last days, I had lot of discussion with him in regard to continuation of Bheem Patrika and Bheem Patrika Publications. One day he said to me, “you are a qualified; you should continue it”. He was quite confident that I am capable to run Bheem Patrika so I started digital version in the month of October, 2023 and regularly publishing it with the support of B. R. Bhardwaj, my brother Anand Kumar Balley from Canada. We as his children are proud of our great father who fulfilled his promise given to Baba Saheb Dr. B. R. Ambedkar carried forward the Caravan. He was intellectual giant. Our father was a friend, philosopher to all of us. He was a Hero and would remain a Hero to all of us. Papa Ji, we cannot forget you. We are also sure that the people who knew you and your contributions & accomplishments to Ambedkar Mission and literature would keep your name alive in the minds of the coming generations.
–Dr. Rahul Kumar Balley.
Sohan Lal Sampla
Sohal Lal Sampla, a true Ambedkrite and Buddhist migrated to Britian in 1974 and lived in Bedford till 1975 before permanently migrating to German in 1984. In his stay at Bedford, United Kingdom, he met Chanan Chahal, Rattan Lal Sampla. Chanan Chahal was working in the Federation of Ambedkarite and Buddhist organisations (FABO) and spreading the message of Baba Saheb Dr. with other prominent Ambedkarites & Buddhists in the United Kingdom.
Before migrating to United Kingdom, Sohan Lal Sampla, Bodh Raj Sampla, Prakash Sampla along with other 51 active members of Republican Party of India(RPI) participated in 1964 agitation. Sohan Lal Sampla went with others to Delhi to protest in front of Prime Minister of India (Lal Bahadur Shastri) house. The agitation from Punjab was led by renowned, respected, mentor Lahori Ram Balley, general secretary of Republican Party of India
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
Akash Anand was appointed by Mayawati as successor and national coordinator on 10 December, 2023 and removed in May 2024. At Sitapur rally, Akash Anand criticised Congress and Samajwadi Party (SP). He also alleged that BJP government is a terrorist government. A case was registered by the Yogi government against Akash Anand.
Mayawati, forever, sent nephew Akash Anand to a filthy gutter and destroyed his political career. After this Akash Anand would never gain a respect from the Dalit leaders and workers. According to insider sources, Mayawati is highly egoistic person. By removing Akash Anand, Mayawati hurt the sentiments of the Dalits.
When a meeting of national coordinator is held at BSP headquarters in Lucknow, all BSP leaders and workers (even qualified professors, teachers, lawyers, doctors etc.) are made to sit on the floor. Only one chair is kept in the hall by Mayawati`s Chamchas (a phrase popularised by Manyavar Kanshi Ram – 1934-2009) on which Mayawati sits and gives directions to Dalit leaders. It is a known fact Baba Saheb Dr. Ambedkar always make Dalits sit on the chair.
After the debacle of BSP in all states of India, the Dalit politics is found directionless. Above that, Mayawati by removing nephew Akash Anand has sent a clear and loud message that Mayawati, come what may, she is not going to tolerate anybody within her party even her own nephew to go against the BJP. This proves that BSP is a ‘B’ team of BJP.
The BJP bent upon destroying ‘Reservation and Constitution’ and Mayawati is afraid to form a solid front against the BJP. Her weakness sent a message to the local BSP leaders that they, no more, can depend on Mayawati for their political future.
Several leaders within the BSP or outside the BSP claim that Mayawati is intolerant. It is often heard in the public that Mayawati does not tolerate educated, intelligent and staunch Ambedkarite in her party. Dr. R.S. Praveen Kumar, IPS quit BSP. He was feeling suffocated. Mayawati takes all decisions. She hardly allows any leader to speak to the Media without her permission. Several former BSP leaders publicly alleged that Mayawati takes money for offering seats. Either BSP candidates win or lose, it does not bother Mayawati. she is only concerned about her own financial interests.
Dalits wants to exit from Brahmanical slavery but a new kind of slavery by their own political leader has started. Dalit political leaders who have money, power make lower-level Dalit leaders their slaves.
In absence of other Dalit political parties at the national level, as of today, the name of Mayawati for enslaving the Dalits is on the top. There is no need of Brahmanical slavery, Dalit leaders like Mayawati are enough to make Dalits political slaves.
This new kind of slavery within Dalits would never make capable Dalits politically to capture power and rule the country.
गुलामी के भीतर एक नई तरह की गुलामी
आकाश आनंद को 10 दिसंबर, 2023 को मायावती ने उत्तराधिकारी और राष्ट्रीय संयोजक के रूप में नियुक्त किया था और मई 2024 में हटा दिया गया था। सीतापुर रैली में, आकाश आनंद ने कांग्रेस और सपा की आलोचना की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार आतंकवादी सरकार है. आकाश आनंद के खिलाफ योगी सरकार ने केस दर्ज कराया ।
मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को हमेशा के लिए गटर में भेज दिया और उनका राजनीतिक करियर बर्बाद कर दिया. इसके बाद आकाश आनंद को दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं से सम्मान नहीं मिलेगा. अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, मायावती बेहद अहंकारी व्यक्ति हैं। आकाश आनंद को हटाकर मायावती ने दलितों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है । जब लखनऊ में बसपा मुख्यालय में राष्ट्रीय समन्वयक की बैठक होती है, तो सभी बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं (यहां तक कि योग्य प्रोफेसर, शिक्षक, वकील, डॉक्टर आदि) को फर्श पर बैठाया जाता है I उनके चमचों द्वारा हॉल में केवल एक कुर्सी रखी जाती है (मान्यवर कांशीराम द्वारा प्रचलित एक मुहावरा – 1934-2009) जिस पर बैठकर मायावती दलित नेताओं को निर्देश देती हैंI यह सर्वविदित तथ्य है कि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर हमेशा दलितों को कुर्सी पर बिठाते थे।
भारत के सभी राज्यों में बसपा की पराजय के बाद दलित राजनीति दिशाहीन हो गई है। ऊपर से, भतीजे आकाश आनंद को हटाकर मायावती ने साफ और जोरदार संदेश दे दिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपनी पार्टी के अंदर किसी को, यहां तक कि अपने भतीजे को भी बीजेपी के खिलाफ जाने को बर्दाश्त नहीं करेंगी. इससे साबित होता है कि बसपा भाजपा की ‘बी’ टीम है।
भाजपा आरक्षण और संविधान को नष्ट करने पर तुली है और मायावती भाजपा के खिलाफ ठोस मोर्चा बनाने से डर रही हैं। उनकी कमजोरी ने स्थानीय बसपा नेताओं को यह संदेश दिया कि अब वे अपने राजनीतिक भविष्य के लिए मायावती पर निर्भर नहीं रह सकते।
बसपा के भीतर या बसपा के बाहर कई नेताओं का दावा है कि मायावती असहिष्णु हैं। जनता में अक्सर सुनने को मिलता है कि मायावती अपनी पार्टी में पढ़े-लिखे, बुद्धिमान और कट्टर अम्बेडकरवादियों को बर्दाश्त नहीं करतीं। डॉ. आर.एस. आईपीएस प्रवीण कुमार ने बसपा छोड़ी। उसे घुटन महसूस हो रही थी. सारे फैसले मायावती लेती हैं. वह शायद ही किसी नेता को अपनी अनुमति के बिना मीडिया से बात करने की अनुमति देती हैं। कई पूर्व बसपा नेताओं ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि मायावती सीटें देने के लिए पैसे लेती हैं। बसपा के उम्मीदवार जीतें या हारें, इससे मायावती को कोई फर्क नहीं पड़ता. वह केवल अपने वित्तीय हितों के बारे में चिंतित है।
दलित ब्राह्मणवादी गुलामी से बाहर निकलना चाहते हैं लेकिन उनके अपने राजनीतिक नेता द्वारा एक नई तरह की गुलामी शुरू हो गई है। जिन दलित राजनीतिक नेताओं के पास पैसा है, ताकत है वे दलितों के निचले स्तर के नेताओं को अपना गुलाम बनाते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर अन्य दलित राजनीतिक दलों के अभाव में आज की तारीख में दलितों को गुलाम बनाने में मायावती का नाम सबसे ऊपर है। ब्राह्मणवादी गुलामी की कोई जरूरत नहीं है, दलितों को राजनीतिक गुलाम बनाने के लिए मायावती जैसे दलित नेता ही काफी हैं.
दलितों के भीतर की यह नई तरह की गुलामी कभी भी दलितों को राजनीतिक रूप से सत्ता पर कब्जा करने और देश पर शासन करने में सक्षम नहीं बनाएगी।
(हिन्दी अनुवाद श्री बी.आर. भारद्वाज द्वारा)
-By Bheem Patrika Correspondent
The result of 2024 Lok Sabha elections has shown that people of India are not fools. The BJP politics of communal divide has been rejected. The brand Modi is also rejected. The intelligent voters broke down the ego of Modi and sent him a loud and clear message that the people want peace and love in the country. The people of India also sent a loud and clear message to Modi and his party that they can fool voters one time but not every time. The intelligent unemployed youth rejected the politics of religion – Ram Mandir, the defeat of BJP candidate in Ayodhya shows that voters of India understands that religion is a personal thing. BJP supporters in Ayodhya are upset to see the attitude of Hindu voters in Ayodhya. Hindus did not accept Modi who claimed that Ram is brought by the Modi. The prophecy of Acharyas at Ayodhya proved right. The BJP is short of majority (272/543). BJP got 240 and Congress got 99. The Samajwadi Party (SP) secured 37 seats in Uttar Pradesh emerging as the largest single party. It is a great crisis for the BJP despite Ram Mandir issue. In Maharashtra Congress won 13 seats, Shiv Sena(UBT) 9 seats, Sharad Pawa`s NCP won 8 seats. The result in these two states broke down the backbone of the BJP despite Modi`s obscene language at every public rally.
The landslide victory of a small worker Kishori Lal Sharma of Congress Party in Amethi against a wealthy, resourceful Smriti Irani is a shock to the BJP. At personal level, Smriti Irani feels humiliation since she is defeated not by a member of Gandhi family but a small worker of the Congress party.
The BJP cannot form government without the support of NDA allies, this might not be acceptable to Modi and BJP but Modi said that he is going to form the government. According to former judge in an interview to Neelu Vyas on AAA news channel of Supreme Court of India, the Modi should shave his head and go to a cave. He also said that Modi is aware of what is going in the country like Unemployment, high inflation and malnourishment among children. He also said, the RSS is a secret, fascist organization. He also said that the country under Modi would face a chaotic situation in the coming six months.
The Modi addressed BJP workers at BJP New Delhi office. From his body language one can understand that Modi is upset about the result. The division between BJP and RSS is another troubling issue for the Modi. If Modi becomes third time Prime Minister, he has to perform; he has to give jobs, he has to take care of farmers; he has to reduce inflation. These economic challenges would create an unpleasant situation in the parliament of India.
Congratulations to the intelligent voters of India. Every political party should never take them for granted, they rejected communal politics in the past and would also reject communal politics in future.
हिंदी अनुवाद
भारत के लोगों ने भाजपा की सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति को खारिज कर दिया।
– भीम पत्रिका संवाददाता द्वारा
2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया है कि भारत की जनता मूर्ख नहीं है. सांप्रदायिक विभाजन की भाजपा की राजनीति को खारिज कर दिया गया है। मोदी ब्रांड को भी खारिज कर दिया गया है. बुद्धिमान मतदाताओं ने मोदी के अहंकार को तोड़ दिया और उन्हें स्पष्ट संदेश दिया कि लोग देश में शांति और प्रेम चाहते हैं। भारत के लोगों ने भी मोदी और उनकी पार्टी को स्पष्ट संदेश दिया कि वे मतदाताओं को एक बार मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन हर बार नहीं। बुद्धिमान बेरोजगार युवाओं ने धर्म-राम मंदिर की राजनीति को नकारा, अयोध्या में बीजेपी उम्मीदवार की हार बताती है कि भारत के मतदाता समझते हैं कि धर्म एक निजी चीज है. अयोध्या में हिंदू वोटरों का रुख देखकर बीजेपी समर्थक परेशान हैं. हिंदुओं ने मोदी को स्वीकार नहीं किया जिन्होंने दावा किया था कि राम को मोदी ही लेकर आए हैं। अयोध्या में आचार्यों की भविष्यवाणी सही साबित हुई। बीजेपी बहुमत (272/543) से पीछे है. बीजेपी को 240 और कांग्रेस को 99 सीटें मिलीं। समाजवादी पार्टी (एसपी) ने उत्तर प्रदेश में 37 सीटें हासिल कीं और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राम मंदिर मुद्दे के बावजूद बीजेपी के लिए यह बड़ा संकट है. महाराष्ट्र में कांग्रेस ने 13 सीटें, शिवसेना (यूबीटी) ने 9 सीटें, शरद पावा की एनसीपी ने 8 सीटें जीतीं। हर सार्वजनिक रैली में मोदी की अभद्र भाषा के बावजूद इन दोनों राज्यों के नतीजों ने भाजपा की कमर तोड़ दी।
अमेठी में कांग्रेस पार्टी के एक छोटे से कार्यकर्ता किशोरी लाल शर्मा की संपन्न, साधन संपन्न स्मृति ईरानी के खिलाफ जबरदस्त जीत बीजेपी के लिए एक झटका है. व्यक्तिगत स्तर पर स्मृति ईरानी खुद को अपमानित महसूस कर रही हैं क्योंकि उन्हें गांधी परिवार के किसी सदस्य ने नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के एक छोटे से कार्यकर्ता ने हराया है.
एनडीए सहयोगियों के समर्थन के बिना बीजेपी सरकार नहीं बना सकती, ये बात शायद मोदी और बीजेपी को मंजूर नहीं होगी लेकिन मोदी ने कहा कि वो सरकार बनाने जा रहे हैं. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एएए न्यूज चैनल पर नीलू व्यास को दिए एक साक्षात्कार में पूर्व न्यायाधीश के अनुसार, मोदी को अपना सिर मुंडवा लेना चाहिए और एक गुफा में चले जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी को पता है कि देश में बेरोजगारी, महंगाई और बच्चों में कुपोषण जैसी क्या स्थिति है. उन्होंने यह भी कहा, आरएसएस एक गुप्त, फासीवादी संगठन है। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी के नेतृत्व में देश को आने वाले छह महीनों में अराजक स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
मोदी ने बीजेपी के नई दिल्ली कार्यालय में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. उनकी बॉडी लैंग्वेज से समझ आ रहा है कि मोदी नतीजों से परेशान हैं. बीजेपी और आरएसएस के बीच विभाजन मोदी के लिए एक और परेशान करने वाला मुद्दा है. अगर मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें प्रदर्शन करना होगा; उन्हें नौकरियाँ देनी हैं, उन्हें किसानों का ध्यान रखना है; उसे महंगाई कम करनी है. ये आर्थिक चुनौतियाँ भारत की संसद में अप्रिय स्थिति पैदा कर देंगी।
भारत के बुद्धिमान मतदाताओं को बधाई. प्रत्येक राजनीतिक दल को उन्हें कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए, उन्होंने अतीत में सांप्रदायिक राजनीति को खारिज कर दिया था और भविष्य में भी सांप्रदायिक राजनीति को खारिज कर देंगे।
(हिंदी अनुवाद बीआर भारद्वाज द्वारा)
-By Bheem Patrika Correspondent
A politically shining Star Dalit leader Chandrashekar AZAD won landslide victory from Nagina Scheduled Caste reserved constituency of western Uttar Pradesh by a margin of over 1.51. lakh votes against BJP candidate. Azad has been active in politics. Azad meets people and solve their day-to-day problems. Azad despite Mayawati opposition won this seat and sent a clear message to Mayawati that the Dalits are not fools. The landslide victory of Azad shows that Dalits wants a leader who takes up their issue with the state and central government. Dalits and Muslims of Nagina rejected Mayawati candidate because they know that Mayawati’s BSP is a ‘B” team of the BJP which is bent on destroying Constitution of India, annihilating Reservation and committing heinous crimes on the poor and hapless Dalits of Uttar Pradesh.
Chandrashekar AZAD is always seen on the roads organizing mass rallies against Dalit atrocities. Whereas Mayawati is sitting in Air -condition. Her party agents make money and run away from the state. There is no discussion about Mayawati in mainstream media except paid news.
Bheem Patrika and its readers wishes Chandrashekar AZAD heartiest congratulations on winning Nagina seat with a huge margin.
“Political tyranny is nothing compared to the social tyranny and a reformer who defies society is a more courageous man than a politician who defies Government.”
-Dr. B. R. Ambedkar
चन्द्रशेखर आज़ाद – चमकता सितारा
-भीम पत्रिका संवाददाता द्वारा
राजनीतिक रूप से चमकते सितारे दलित नेता चन्द्रशेखर आज़ाद ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नगीना अनुसूचित जाति आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से 1.51 से अधिक के अंतर से शानदार जीत हासिल की। बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ लाखों वोट. आज़ाद राजनीति में सक्रिय रहे हैं। आज़ाद लोगों से मिलते हैं और उनकी रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान करते हैं। मायावती के विरोध के बावजूद आज़ाद ने यह सीट जीत ली और मायावती को स्पष्ट संदेश दे दिया कि दलित मूर्ख नहीं हैं। आज़ाद की भारी जीत से पता चलता है कि दलित एक ऐसा नेता चाहते हैं जो उनके मुद्दे को राज्य और केंद्र सरकार के सामने उठाए। नगीना के दलितों और मुसलमानों ने मायावती के उम्मीदवार को खारिज कर दिया क्योंकि वे जानते हैं कि मायावती की बसपा भाजपा की ‘बी’ टीम है जो भारत के संविधान को नष्ट करने, आरक्षण को खत्म करने और उत्तर प्रदेश के गरीब और असहाय दलितों पर जघन्य अपराध करने पर आमादा है।
चन्द्रशेखर आज़ाद हमेशा दलित उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सड़कों पर जन रैलियां आयोजित करते नज़र आते हैं। जबकि मायावती एयर कंडीशन में बैठी हैं. उनकी पार्टी के एजेंट पैसा कमाते हैं और राज्य से भाग जाते हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया में पेड न्यूज के अलावा मायावती के बारे में कोई चर्चा नहीं है.
भीम पत्रिका और उसके पाठकों ने चन्द्रशेखर आज़ाद को नगीना सीट भारी अंतर से जीतने पर हार्दिक बधाई दी।
(हिंदी अनुवाद बीआर भारद्वाज द्वारा)
-By Bheem Patrika Correspondent
BSP could not open account in 2024 Lok Sabha elections. All the candidates lost their seat. Now is the time for Mayawati to resign from BSP and give chance to Akash Ananad, her nephew, a fire brand leader. Akash Anand is all the qualities to steer BSP minus BJP. Akash Anand is popular among the Dalit masses. Mayawati is in active for the last 15 years. Even in 2027 State elections, she cannot win seats. The Dalits, Muslims and other backward class voters are upset with Mayawati because of her secret agenda with BJP.
Dalit issues. The so -called Dalit intellectuals in Uttar Pradesh are quite disturbed with her kind of politics. The BSP grassroot level workers have already left Mayawati. Only greedy agents of the BSP remains with Mayawati who during the elections comes out of their holes and make money from the candidates and run away.
In Punjab, 33% Dalit population, no BSP candidate won seat. The reason is very clear. It happens because Mayawati`s bad policies in the past. Now all the Dalits should remove the picture of Mayawati from the BSP flags. The sooner the Dalits reject the kind of opportunistic politics of Mayawati the better it would for their own interests.
“Democracy is not merely a form of Government.
It is primarily a mode of associated living, of conjoint communicated experience.
It is essentially an attitude of respect and reverence towards our fellow men.” – Dr. B. R. Ambedkar
हिंदी अनुवाद
मायावती को बसपा से इस्तीफा दे देना चाहिए
2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा खाता नहीं खोल पाई. सभी उम्मीदवार अपनी सीट हार गये. अब समय आ गया है कि मायावती बसपा से इस्तीफा दें और अपने भतीजे और फायर ब्रांड नेता आकाश आनंद को मौका दें। आकाश आनंद में बीजेपी को छोड़कर बीएसपी को चलाने की सारी खूबियां हैं. आकाश आनंद दलित जनता के बीच लोकप्रिय हैं. मायावती पिछले 15 साल से सक्रिय हैं. यहां तक कि 2027 के राज्य चुनावों में भी वह सीटें नहीं जीत सकेंगी। भाजपा के साथ गुप्त एजेंडे के कारण दलित, मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता मायावती से नाराज हैं।
मायावती पार्टी में किसी दूसरे नेता को आगे नहीं बढ़ने देतीं. यहां तक कि मीडिया भी उनके साथ व्यवहार करती है। वह एक लिखित बयान लेकर आती हैं और मीडियाकर्मियों से बात करती हैं। मायावती ने दलित मुद्दे नहीं उठाए. उत्तर प्रदेश में तथाकथित दलित बुद्धिजीवी उनकी इस तरह की राजनीति से काफी परेशान हैं। बसपा के जमीनी स्तर के कार्यकर्ता पहले ही मायावती का साथ छोड़ चुके हैं। मायावती के साथ केवल बसपा के लालची एजेंट बचे हैं जो चुनाव के दौरान अपने बिलों से बाहर आते हैं और उम्मीदवारों से पैसा कमाते हैं और भाग जाते हैं।
33 फीसदी दलित आबादी वाले पंजाब में बीएसपी का कोई उम्मीदवार सीट नहीं जीत सका. कारण बहुत स्पष्ट है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अतीत में मायावती की ख़राब नीतियां थीं। अब सभी दलितों को बसपा के झंडों से मायावती की तस्वीर हटा देनी चाहिए. दलित जितनी जल्दी मायावती की अवसरवादी राजनीति को खारिज कर देंगे उतना ही उनके हितों के लिए बेहतर होगा।
(हिंदी अनुवाद – बी आर भारद्वाज द्वारा)
बाबा साहब डॉ. अंबेडकर ने समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व पर अपने दर्शन में बहुत बल दिया है और अनेक बार इन विशेषताओं को रेखांकित किया है. उन्होंने यह भी कहा है कि मैंने इसके बारे में फ्रैंच क्रांति से प्रेरणा ग्रहण नहीं की है, बल्कि बुद्ध की शिक्षाओं से इस बारे मुझे प्रेरणा प्राप्त हुई है.
समानता का अर्थ है इन्सान के नाते इन्सानों में ऊंच-नीच का भेदभाव न हो, बल्कि सबके साथ सब समानता अर्थात् बराबरी का व्यवहार करें. जातिवादी भेदभाव समानता का घोर शत्रु है. भारतीय समाज के संदर्भ में समानता का मुख्य अर्थ है कि जातिगत भेदभाव व ऊंच-नीच का अंत हो.
स्वतंत्रता राजनीतिक भी होती है, सामाजिक भी. राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र देश में सामाजिक स्वतंत्रता का अभाव हो सकता है, जैसे जातिवाद की जकडऩ के कारण हमारे यहां सामाजिक स्वतंत्रता नहीं थी, परन्तु अब सांविधानिक प्रावधानों और पूंजीवादी दबावों के कारण स्वतंत्रता जन्म ले रही है और यौवन की ओर उन्मुख हो रही है. पहले जहां जातियों का दबाव था. ऊंची जातियों का निम्न जातियों पर और हर जाति का अपने सदस्यों पर. अब मकडज़ाल छिन्न-भिन्न हो रहा है और एक दिन इसका बीजनाश हो जाएगा.
तीसरी बात है : भ्रातृत्व. समाज में स्वतंत्रता के सद्भाव में ही भ्रातृत्व प्रफुल्लित हो सकता है. अभी वैसा भ्रातृत्व कायम नहीं हुआ है, जैसा डॉ. अंबेडकर चाहते थे. जातिगत भेदभाव जिस अनुपात में समाप्त होगा, सिर्फ कानूनी तौर पर नहीं, बल्कि मनों से, उसी अनुपात में भ्रातृत्व का बिरवा विकसित होगा. इस विषय को स्पष्ट करते हुए बाबा साहब कहते हैं :
‘‘If you ask me, my ideal would be a society based on Liberty, Equality and Fraternity. An ideal society should be mobile, should be full of channels for conveying a change taking place in one part to other parts. In an ideal society there should be many interests consciously communicated and shared. There should be varied and free points of contact with other modes of association. In other words there must be social endosmosis. This is fraternity.’’
(Ref. : Dr. Baba Saheb Ambedar : Writings and Speeches, Vol. 1, Page 57)
अर्थात् : यदि मुझ से पूछें तो मेरा आदर्श समाज वह है जो स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व (भाईचारे) पर आधारित है. आदर्श समाज गतिशील होना चाहिए, ऐसी प्रणालियों से भरपूर होना चाहिए जो एक स्थान पर हो रहे परिवर्तन को अन्य स्थानों के लोगों को सूचित करें. आदर्श समाज में बहुत से हित ऐसे होने चाहिए, जो सचेत रूप से संप्रेषित और साझा किए जाने चाहिए, वहां साहचार्य के अन्य रूपों से संपर्क के विभिन्न और स्वतंत्र बिन्दु होने चाहिए. दूसरे शब्दों में, वहां सामाजिक अंतराभिसरण (श्वठ्ठस्रशह्यद्वशह्यद्बह्य) अर्थात् घुलने-मिलने का अवसर हो, यह भ्रातृत्व है.
इसके बाद बाबा साहब स्वतंत्रता को स्पष्ट करते हुए कहते हैं :
‘‘Liberty (is) in the sense of a right to free movement, in the sense of a right to life and limb. Liberty (is) in the sense of a right to property, tools and materials as being for earning a living to keep the body in due state of health. The supporters of caste who would allow liberty in the sense of a right to life, limb and property, would not readily consent to liberty in the sense, in as much as it involves liberty to choose one’s profession. But object to this kind of liberty is to perpentuate slavery.’’
(Ref. : Ibid., Page 57)
अर्थात् : स्वतंत्रता का अर्थ है : गमनागमन का अधिकार होना, जीवन और अंगों का अधिकार होना, स्वतंत्रता का अर्थ है संपत्ति का अधिकार, उन औज़ारों और सामग्री का अधिकार जिससे व्यक्ति आजीविका कमा सके ताकि वह अपने शरीर को उचित रूप में स्वस्थ बनाए रख सके. जातिवाद के समर्थक शरीर, अंग और संपत्ति का अधिकार तो स्वीकार करते हैं, परन्तु अपनी इच्छा का पेशा अपनाने का अधिकार देने को आसानी से तैयार नहीं हैं, पर ऐसा करना तो दासता को कायम रखना है.
इसके बाद बाबा साहब समानता की व्याख्या करते हैं और कहते हैं :
‘‘Any objection to equality ? This has obviously been the most contentious part of the slogan of the French Revolution. The objections to equality may be sound and one may have to admit that all are not equal. But what of that ? Equality may be a fiction but nonetheless one must accept it as the governing principle. A man’s power is dependent upon (1) physical heredity, (2) Social inheritance or endowment in the form of parental care, education, accumulation of scientific knowledge, everything which enables him to be more efficient than the savage and finally (3) on his own efforts. In all these three respects men are undoubtedly unequal. But the questions is, shall we treat them as unequal because they are unequal. This is a question which the opponents of equality must answer.’’
(Ref. : Ibid; Page 58)
अर्थात् : समानता को लेकर क्या आपत्ति है ? यह फ्रांस की क्रांति के नारे का बहुत विवादास्पद हिस्सा रहा है. समानता को लेकर किए गए एतराज गंभीर हो सकते हैं और यह मानना पड़ सकता है कि सब समान नहीं हैं, पर उसका क्या करें ?
समानता एक कल्पना हो सकती है तथापि इसे नियामक सिद्धांत माना जाना चाहिए. आदमी की शक्ति उसकी (1) भौतिक आनुवंशिकता, (2) सामाजिक उत्तराधिकार (जिसका अर्थ है : मां-बाप द्वारा परवरिश. शिक्षा, वैज्ञानिक ज्ञान का संग्रह और हर वह चीज व्यक्ति असभ्य (Savage) से ज्यादा कुशल बनाती है) और अंतत: उसके अपने प्रयत्नों पर आश्रित होती है. इन सब दृष्टियों से इन्सान निस्संदेह असमान (नाबराबर) हैं. परन्तु प्रश्न यह है कि क्या हमें नाबराबर लोगों के साथ व्यवहार भी नाबराबरी का करना चाहिए, क्योंकि वे नाबराबर हैं ? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर समानता के विरोधियों को अवश्य देना होगा. संविधान में इन चीज़ों का प्रावधान है, परन्तु उसे व्यवहार में तो इन्सान ही लाएगा, कोई संविधान चाहे कितना श्रेष्ठ हो, वह स्वत: कुछ नहीं कर सकता.
अब समाज में मुख्यत: दो वर्ग दिखाई देते हैं : एक वे हैं, जो समता आदि के चाहवान हैं, जबकि दूसरे वे हैं जिनकी इस तरह की चीज़ों में रुचि नहीं है.
हमें बताया जाता है कि समता आदि के पक्षधर बहुजन हैं, जो जनसंख्या का 85 प्रतिशत हैं, जिनमें पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जातियां एवं अनुसूचित जनजातियां शामिल हैं. इन्हीं बहुजनों को अंबेडकर द्वारा बताए समता, स्वतंत्रता आदि को समाज में स्थापित करने का प्रयास करना होगा, क्योंकि ऊंची जातियों के वे लोग जिन्हें मनुवादी या ब्राह्मणवादी कहा जाता है, उनकी रुचि समता आदि में होना स्वाभाविक नहीं है. उन्हें इससे कुछ प्राप्त नहीं होगा, उल्टे उन्हें क्षुद्र अहंकार छोडऩा पड़ जाएगा, जिसे वे बहुत दृढ़ता से पकड़े हुए हैं.
पर क्या वे लोग समता आदि के लिए काम कर रहे हैं, जिन्हें इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है ? जो लोग मनुवाद अथवा ब्राह्मणवाद को पानी पी-पी कर कोसते हैं, क्या वे इस/इन वाद/वादों के विरुद्ध कभी कोई आंदोलन छेड़ते हैं ? क्या उनके पास इन वादों का कोई विकल्प है, कोई ऐसी विचारधारा की रूपरेखा तैयार है, जिसे इन वादों के स्थान पर प्रतिपादित किया जा सके ? क्या ये वर्ग गद्दी और हिस्सेदार मांगने के सिवा और कुछ करने की योजना बनाए हुए हैं या गद्दी एवं ज्यादा हिस्सेदारी प्राप्त करके मनुवाद/ब्राह्मणवाद के आधिपत्य में ही जीवन-यापन करके संतुष्ट हैं ?
‘भारत शूद्रों का होगाÓ (2022) पुस्तक के कुछ अंश इस संदर्भ में बहुत प्रासंगिक प्रतीत होते हैं : आरक्षण की राजनीति का नकारात्मक पहलू यह है कि यह एक सांप्रदायिक आंदोलन का रूप ले रही है, जबकि इसको एक देशव्यापी सामाजिक आंदोलन के रूप में उभरना चाहिए था. इस राजनीति में एक समूह की मांगें और अधिकार ही दिखाई पड़ता है…जातिप्रथा के विरुद्ध एक सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा किए बिना आरक्षण की राजनीति खोखली हो जाएगी. अगर जाति-प्रथा-विरोधी सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन नहीं रहेगा तो शंकराचार्यवाद और मन्दिरवाद मज़बूत होकर रहेगा.
(संदर्भ : पृष्ठ 115-116)
ज़रूरत यह है कि पिछड़े और दलित, जो 85 प्रतिशत हैं, वे राष्ट्र-नायक और समाज-परिवर्तक के रूप में उभरें, हमारे प्रतिपक्षी के नेतृत्व में एक धार्मिक-सामाजिक आंदोलन देश में चल रहा है. सिनेमा, संचार माध्यम, इतिहास लेखन से लेकर शिक्षा और संगीत के क्षेत्र तक यह आंदोलन व्याप्त है, अर्थनीति का निजीकरण इसे गति दे रहा है. इसके विपरीत, हमारे आरक्षण आंदोलन का कोई समग्र विचार नहीं है, इसका कोई सांस्कृतिक आंदोलन नहीं है, इसका कोई आर्थिक आंदोलन नहीं है, इसका कोई शैक्षणिक आंदोलन नहीं है, इसका कोई इतिहास-लेखन नहीं है.
जब हम 85 प्रतिशत हैं तो राष्ट्र और पूरे समाज की चिन्ता हमें ही करनी होगी, पर हम इस ओर ध्यान नहीं दे रहे. ऐसे में बाबा साहब का सपना कैसे पूरा हो सकता है ? समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व कैसे कायम होगा और हमारे सिवा और कौन करेगा ?
यह बहुत बड़ी जि़म्मेदारी है हम पर, इससे मुंह मोड़ लेने से न हमारा भला होगा और न बाबा साहब का सपना साकार होगा. आओ बाबा साहब के सच्चे अनुयायियों की तरह उनकी जयंती पर प्रण करें कि हम समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझते हुए समाज में स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व स्थापित करने की दिशा में यथाशक्ति जुटेंगे, क्योंकि इसमें हमारा ही कल्याण होने वाला है.
ह्न ‘अज्ञात वासÓ बंगा,
जि़ला : शहीद भगत सिंह नगर-144505 (पंजाब)
मोबाइल : +91-98145-80497
नागपुर (महाराष्ट्र)
स्मृतिशेष धर्मदास चंदनखेड़े जी, नागपुर (महाराष्ट्र) के द्वारा सर्वप्रथम ऑल इंडिया समता सैनिक दल (रजि.), नागपुर को ट्रेनिंग सेंटर के लिए टाकलघाट, वर्धा (महाराष्ट्र) में अपनी करोड़ों की अमूल्य भूमि उन्होंने समर्पण व नि:स्वार्थ भावना से दल को दान (यानि कि अनाथपिंडक के दान की भांति) कर दी.
इसी कड़ी में उनके पश्चात दानदाताओं में दूसरे स्थान पर डॉक्टर एच आर गोयल साहब (चेयरमैन, AISSD), जोधपुर (राजस्थान) के द्वारा चिंचोली, नागपुर में स्थित दल के ट्रेनिंग सेंटर को विकसित एवं पूर्ण करने के लिए उन्होंने समर्पण व निस्वार्थ भावना से काफी धनराशि दल को दान की (उन्होंने एक अनाथपिंडक की भांति दान किया को, अगर मैं उनकी तुलना अनाथपिंडक से करूं तो भी इसमें मुझे कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी).
इतना ही नहीं डॉक्टर गोयल साहब भारत में जहां भी जाते हैं, वहां बौद्ध/ अंबेडकरी लेखकों की आर्थिक सहायता एवं वहां स्थित बुद्ध विहारों में भी बहुत दान करते आ रहे हैं.
अपनी सरकारी नौकरी से सेवा- निवृत्ति के बाद वे जोधपुर व आस -पास के कई जिलों में स्थित सरकारी छात्रावास एवं आरक्षित वर्ग के जातिगत निजी छात्रावासों में भी जाकर वहां रहने वाले छात्र-छात्राओं में बुद्ध/अंबेडकरी साहित्य को बांटते हुए उनमें अंबेडकर -मिशन का प्रचार -प्रसार करते आ रहे हैं. साथ ही वे जरूरतमंद छात्र- छात्राओं की आर्थिक सहायता भी करते आ रहे हैं.
इसके लिए उन्हें बहुत-बहुत साधुवाद एवं उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई एवं मंगल कामनाएं!
नागपुर (महाराष्ट्र)
डॉ. सुरेन्द्र अज्ञात
श्री एल. आर. बाली, पर लिखने बैठा हूं, पर मेरी स्थिति कवि के शब्दों में यह है : ” क्या भूलूं क्या याद करूं मैं ?” जिस व्यक्ति से आधी सदी से भी ज्यादा समय का घनिष्ठ संबंध रहा हो, उससे संबंधित यादों को लिखते समय ऐसा होना स्वाभाविक ही है.
बाली साहब कुशल और ओजस्वी वक्ता थे. वस्तुतः मैं उनका 1967 में बंगा में दिया एक भाषण सुन कर ही सर्वतः प्रथम उनके प्रति आकृष्ट हुआ था. भाषण था तो राजनीतिक पर उसमें बुद्धिवाद का भी बहुत बड़ा अंश था. उस भाषण में रणजीत सिंह के राज्य में दलितों की अवस्था की बाबत की गई उनकी टिप्पणी इतनी ऐतिहासिक और हृदय स्पर्शी थी कि उसके 20-25 वर्ष बाद ‘नवां ज़माना’ के संपादकीय में जगजीत सिंह आनन्द ने उसे बाली साहब के बंगा में दिए भाषण के हवाले से उद्धृत किया था. वह संपादकीय मैंने बाली साहब को डाक द्वारा भेजा भी था, जो उनके कागज़ों- पत्रों में कहीं विद्यमान होगा.
बाली साहब के भाषण को सुनकर मुझसे पहले भी एक अन्य गैर – दलित उन पर फिदा हुआ था – वह थे नवांशहर के महाशय कृष्ण कुमार बोधी. वह आर्यसमाजी थे परन्तु 1956 में जब उन्होंने बाली साहब का भाषण सुना तो वह सदा के लिए बौद्ध एवं अंबेडकरी बन गए – नवांशहर का अंबेडकर – भवन उन्हीं के प्रयत्नों के फलस्वरूप अस्तित्व में आया था.
M.A., Ph.D (Hindi & Sanskrit)
Dr. Ambedkar`s Statues vandalized and hatred behind it
Dr. Rahul Kumar Balley
Since the death of Dr. B.R. Ambedkar in 1956, a wave of hatred among Hindu groups is flourishing. Hindu groups and its leaders claim that ‘Reservation’ for the Scheduled Castes (SCc) and Scheduled Tribes (STs) has pushed back Hindus economically. Reservation for socially and economically SCs/STs was safeguarded by Dr. B. R. Ambedkar that reserved seats for SCs/STs in the government educational institutions and government bodies. Not only this but also, Hindu groups want to perpetuate hatred against Dr. Ambedkar for their own vested interest. The leaders of Hindu groups from, time to time, attack Dr. Ambedkar ideology that talks about casteless society. Dr. Ambedkar`s social philosophy talks about complete annihilation of the caste system. Dr. Ambedkar`s economic philosophy talks about equal opportunity for all irrespective of caste, creed, or color. All these ideals are not acceptable to Hindus groups As a matter of fact, they do not want to establish casteless society. They do not want to share economic development of the country with other backward communities.
Why do Dalits dislike Gandhi?
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
The fight between Bharat Ratna Baba Saheb Dr. Bhim Rao Ambedkar (1891-1956) and M.K. Gandhi (1869-1948) is well documented in the chronicles of Indian history. Dr. Ambedkar was a champion of the downtrodden whereas Gandhi was an ardent supporter of Hinduism and promoted all rubbish traditions, rituals of Brahminism.
Gandhi believed in the sanctity of Manusmriti that ordains & sanctifies the age-long oppression & exploitation of the Untouchables by Hindus. Gandhi was a hard-core promoter of Manusmriti, Gita, Shankaracharya`s Vedant, Mahabharat, Ramayana and the Puranas. The Ramayana used to be regularly read in Gandhi`s family. A Brahmin called Ladha Maharaj used to read it.[1] According to Dr. Ambedkar, the three authors of the Vedas were buffoons, knaves & demons.[2]
Gandhi said that it is foolish to condemn Vyasa for his defense of the caste system.[3] On 25th Dec, 1927, Dr. Ambedkar burnt the ‘Manusmriti’. In an interview with T.V. Parvate in 1938 Dr. Ambedkar said, “The bonefire of Manusmriti was quite intentional, we made a bonefire of it because we view it as a symbol of injustice under which we have been crushed across centuries.”[4] Dr. Ambedkar was an atheist. On 29 Aug,1931 when Gandhi travelled to London, he said to the media, ‘my faith in God, my advisor is God’.[5]
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
Since 2014, India is witnessing a swift rise of wealthy Babas. Superstitious beliefs, bigotry have assumed the color of violence.
According to Article 51 of Indian constitution, every citizen has a fundamental duty to develop scientific temper, humanism and the spirit of inquiry and reform. It is unfortunate that despite under oath of the constitution, Prime Minister Narendra Modi is seen promoting superstitions on several occasions.
Name of Baba | Net Worth ( in Crores) | Trust Name |
Swami Nithayananda | Rs.10,000 Cr | Nithyananda Dhyanapeetam Foundation |
Asaram Bapu | Rs.350 Cr | Asaram Trust, currently in jail. |
Baba Ramdev | Rs.1600 Cr | The Patanjali Ayurved Ltd and Divya Yog Trust, closer to BJP/RSS and promote the politics of Hindutva. |
Sri Sri Ravishankar | Rs.1000 Cr | Art of Living Foundation, business Baba, running grocery stores, pharmacies etc. |
Mata Amritanandamayi | Rs.1500 Cr | Amritanandamayi Trust |
Sadhguru Jaggi Vasudev | Rs.18 Cr | Isha Foundation |
Avdhoot Baba Shivannadji Maharaj | Rs.43 Cr | ShivYog |
Gurmeet Ram Rahim Singh | Rs.1455Cr | Dera Sacha Sauda , Currently on parole, convicted in rape case. |
Data collated from Times of India, Jul10,2023
During Ram temple inauguration at Ayodhya, Uttar Pradesh, Prime Minister bows to a Hindu priest and lie down on the floor it shows that he himself is an unscientific person who not only believe strongly in superstitions but also becomes a role model for all social classes. Prime Minister Narendra Modi dived into the Arabian sea for a darshan of the submerged city of Dwarka , believed to have been the abode of Lord Krishna after he defeated his maternal uncle and king Kansa in Mathura. Such unscientific acts on behalf of Prime Minister of India degrade India`s international image. No Prime Minister even of chauvinist and fanatic Middle East country does such acts. Irish stateman Edmund Burke, “Superstition is the religion of feeble mind”.
India is the only country in the world where a majority educated and uneducated see a huge wealth in Hindu temples and foundations. Donations to such richest Babas come not only from poor people but also corporates, politicians are seen donating a huge money. India is the only country in the world where state governments are seen promoting Hindu religion and Hindu temples.
In any country of the world, the state does not propagate any particular religion but in India, the state is behind creation of Babas who are used for political purposes.
The richest Babas own television channels from where they propagate various kind of superstitious beliefs. Babas are successful in creating fear and insecurities in the minds of gullible people who flock to them in million. See the case of Dhirendra Krishna Shastri also known as Bageshwar Dham Sarkar, age 27, years. A million of followers including politicians, business tycoons and bureaucrats are seen bowing their heads in front of him.
A majority of richest Baba travel by chartered flights. They are found staying in 07-star hotels. They are visiting foreign countries and spend their time lavishly whereas the poor followers are struggling to meet both ends. The role in politics of such Babas behind the curtain can be very much seen. Rather, it is appropriate to say that Babas in India are actively taking parts in daily politics and entering into the Parliament of India. In every social space they propagate superstition. A study by Shagufa Naaz and others found that many crimes have emerged in Indian in the name of superstitions such as rape, murder, defamation, loot etc. They further argue, “ Superstition flourishes only in dark age. Superstitious men cannot achieve success in life because superstition breeds a defeatist mentality”.[1].
Hindu temples are getting lot of funds which are majorly not used for the welfare of common people. Some richest Baba claim to run schools, colleges and universities but in these institutions only the rich students get admission. Similarly, some richest Babas claim that they run Non-Government Organization (NGO) for welfare activities but a majority of such NGOs misuse their funds for political fundings. The tax evasion is common in such NGOs. India has certain laws for some superstition crimes but are not implemented properly. It is unfortunate temple tax bill in Karnataka failed.
The dominance of priestly class is proving dangerous for democratic, secular India. From rural to urban area, the priestly class is enslaving the minds of youths. Even the educated youths are falling prey to the greedy paws of the priestly class and making up their minds that in religion there is a vast wealth rather in jobs. If this is not stopped by central and state governments, the day will come in the history of India when a youth will not go to IITs. He or she will prefer to open an ashram, temple or trust and propagate superstition and make live a luxurious life with power.
When the world is moving forward towards progress with the help of technology, we are limiting ourselves by following superstitious beliefs, therefore superstition is a great hindrance to scientific development. The sooner the Government takes corrective measures and stop pampering the Babas for political ends the better for India it would be. Gurleen Kaur Sethi and Navreet Kaur Saini concluded in their cross -sectional survey consisting of 285 adult females at village Dadlana, Panipat, Haryana found that, the only cure unnecessary superstition is education and knowledge[2]”.
[1] https://patnawomenscollege.in/upload/Explore%20vol%20XI%202/detal/d10-min.pdf.
[2] https://www.researchgate.net/publication/337421659_Prevalence_of_Superstitions_in_Indian_Society_in_21_st_Century.
अमीर बाबा: नए भारत में अंधविश्वास, असहिष्णुता बढ़ रही हैI
2014 के बाद से भारत में अमीर बाबाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अंधविश्वास, कट्टरता ने हिंसा का रंग धारण कर लिया है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुसार, प्रत्येक नागरिक का वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करना एक मौलिक कर्तव्य है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संविधान की शपथ लेने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर अंधविश्वास को बढ़ावा देते नजर आते हैं।
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री का एक हिंदू पुजारी को प्रणाम करना और फर्श पर लेट जाना यह दर्शाता है कि वह खुद एक अवैज्ञानिक व्यक्ति हैं जो न केवल अंधविश्वासों में दृढ़ता से विश्वास करते हैं बल्कि सभी सामाजिक वर्गों के लिए एक आदर्श भी बन जाते हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जलमग्न द्वारका शहर के दर्शन के लिए अरब सागर में डुबकी लगाई, माना जाता है कि मथुरा में अपने मामा और राजा कंस को हराने के बाद यह भगवान कृष्ण का निवास स्थान था। भारत के प्रधान मंत्री की ओर से इस तरह के अवैज्ञानिक कृत्य भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को ख़राब करते हैं। अंधराष्ट्रवादी और कट्टर मध्यपूर्व देश का भी कोई प्रधानमंत्री ऐसी हरकतें नहीं करता.आयरिश राजनेता एडमंड बर्क, “अंधविश्वास कमजोर दिमाग का धर्म है”।
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां बहुसंख्यक शिक्षित और अशिक्षित लोग हिंदू मंदिरों और फाउंडेशनों में भारी संपत्ति देखते हैं। ऐसे सबसे अमीर बाबाओं को दान सिर्फ गरीब लोगों से ही नहीं आता बल्कि कॉरपोरेट, राजनेता भी बड़ी रकम दान करते नजर आते हैं। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां राज्य सरकारें हिंदू धर्म और हिंदू मंदिरों को बढ़ावा देती नजर आती हैं। दुनिया के किसी भी देश में राज्य किसी विशेष धर्म का प्रचार नहीं करता लेकिन भारत में राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले बाबाओं को पैदा करने के पीछे राज्य का ही हाथ है। सबसे अमीर बाबाओं के पास टेलीविजन चैनल हैं जहां से वे विभिन्न प्रकार के अंधविश्वासों का प्रचार करते हैं। बाबा लाखों की संख्या में उनके पास आने वाले भोले-भाले लोगों के मन में भय और असुरक्षा पैदा करने में सफल होते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी जाना जाता है, का मामला देखें, उम्र 27 वर्ष। राजनेताओं, बिजनेस टायकून और नौकरशाहों सहित लाखों अनुयायी उनके सामने सिर झुकाते नजर आते हैं। अधिकांश अमीर बाबा चार्टर्ड उड़ानों से यात्रा करते हैं। वे 07 सितारा होटलों में ठहरते पाए जाते हैं। वे विदेशों का दौरा कर रहे हैं और अपना समय खूब खर्च कर रहे हैं जबकि गरीब अनुयायी दोनों जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पर्दे के पीछे ऐसे बाबाओं की राजनीति में भूमिका खूब देखी जा सकती है. बल्कि यह कहना उचित होगा कि भारत में बाबा लोग दैनिक राजनीति में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं और भारत की संसद में प्रवेश कर रहे हैं। वे हर सामाजिक क्षेत्र में अंधविश्वास का प्रचार करते हैं। शगुफ़ा नाज़ और अन्य लोगों के एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में अंधविश्वास के नाम पर बलात्कार, हत्या, मानहानि, लूट आदि जैसे कई अपराध सामने आए हैं। वे आगे तर्क देते हैं, “अंधविश्वास केवल अंधकार युग में ही पनपता है। अंधविश्वासी मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि अंधविश्वास पराजयवादी मानसिकता को जन्म देता है।” .
हिंदू मंदिरों को बहुत सारा धन मिल रहा है जिसका उपयोग आम लोगों के कल्याण के लिए नहीं किया जाता है। कुछ सबसे अमीर बाबा स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी चलाने का दावा करते हैं लेकिन इन संस्थानों में केवल अमीर छात्रों को ही प्रवेश मिलता है। इसी तरह, कुछ सबसे अमीर बाबा दावा करते हैं कि वे कल्याणकारी गतिविधियों के लिए गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) चलाते हैं, लेकिन ऐसे अधिकांश एनजीओ राजनीतिक फंडिंग के लिए अपने धन का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे एनजीओ में टैक्स चोरी आम बात है. भारत में कुछ अंधविश्वास अपराधों के लिए कुछ कानून हैं लेकिन उन्हें ठीक से लागू नहीं किया जाता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कर्नाटक में मंदिर कर बिल विफल हो गया।
पुरोहित वर्ग का वर्चस्व लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी क्षेत्र तक पुरोहित वर्ग युवाओं के दिमाग पर कब्जा कर रहा है। यहां तक कि पढ़े-लिखे युवा भी पुरोहित वर्ग के लालची पंजों का शिकार हो रहे हैं और यह मन बना रहे हैं कि नौकरियों की बजाय धर्म में अपार धन है। अगर केंद्र और राज्य सरकार ने इस पर रोक नहीं लगाई तो भारत के इतिहास में वह दिन आएगा जब कोई युवा आईआईटी नहीं जाएगा। वह आश्रम, मंदिर या ट्रस्ट खोलकर अंधविश्वास का प्रचार करना और शक्ति के साथ विलासितापूर्ण जीवन जीना पसंद करेगा।
जब दुनिया तकनीक की मदद से प्रगति की ओर आगे बढ़ रही है, हम अंधविश्वासों का पालन करके खुद को सीमित कर रहे हैं, इसलिए अंधविश्वास वैज्ञानिक विकास में एक बड़ी बाधा है। सरकार जितनी जल्दी सुधारात्मक कदम उठाएगी और राजनीतिक स्वार्थों के लिए बाबाओं को बढ़ावा देना बंद करेगी, भारत के लिए उतना ही बेहतर होगा। गुरलीन कौर सेठी और नवरीत कौर सैनी ने गांव ददलाना, पानीपत, हरियाणा में 285 वयस्क महिलाओं के अपने क्रॉस-सेक्शनल सर्वेक्षण में निष्कर्ष निकाला कि, “अनावश्यक अंधविश्वास का एकमात्र इलाज शिक्षा और ज्ञान है”।
(हिन्दी अनुवाद, बी.आर. भारद्वाज )
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
The false propaganda of Trillion Economy
Former MP Subramanian Swamy and a member of ruling party BJP said in a TV interview to Neelu Vyas of AAA media that Prime Minister Narendra Modi does not know ABC of Economics. He also said 2022 has gone and the target of $ 10 trillion could not be achieved. Economy of $ 10 trillion is nothing but a false propaganda by the advisers of Prime Minister Narendra Modi, he said.
We, the people of India, have been hearing again and again from the mouth of BJP leaders that the Indian economy will be $ 10 trillion in 2030. This argument without any credible data was also amplified by Piyush Goyal, Minister of Commerce and Industry and Hardeep Singh Puri, Minister of Petroleum and Natural Gas, Government of India. The pro -government media is also screaming from the rooftop that the Modi Government is going to achieve this target in 2030. Not only this, but also the Modi Government is organizing programmes in five star hotels where Ministers, bureaucrats, business tycoons and bankers are not tired of telling the audience that the Indian economy is booming. As per December 2023 data, India’s current GDP $3.73 trillion.
India under Modi is facing challenges on several fronts.
IMF loan
It is a matter of worry that Modi Government has taken a huge loan of 205 lakh crore from International Monetary Funds( IMF). On every Indian there is a loan of 1.40 Lakh (Economics Times).
Swiss Bank deposits by Indians
Indian funds in Swiss Banks climbed to Rs. 20700 crores highest in 13 years( India Today, Jun 17, 2021).
CAG report exposed Modi Government:
1) Hindustan Aeronautics Limited :CAG has made serious allegations against HAL: for flaws in the design and production of aircraft engines, causing a loss of Rs. 159 crores.
2) Ayodhya Development Project:CAG has also exposed the scam of giving undue benefits to contractors in Ayodhya Development Project. A scam of giving undue benefits of about Rs. 19.73 crores to the contractors in Ayodhya.
3) Ayushman Bharat Scheme: CAG has also exposed the rigging in the ‘Ayushman Bharat Scheme’ itself, in which payments have been made towards dead people by faking them being alive and has also exposed the fraud of linking 7.5 lakh beneficiaries with the same number. 88,760 patients died during treatment.
4) Toll robbery: CAG has revealed the violation of toll rules and said that NHAI has wrongly collected Rs. 132 crores from passengers.
5) Dwarka Expressway: CAG exposed huge rigging in Dwarka Expressway and raised the question that how the cost of building the road reached Rs. 250 crore per kilometer.
6) Bharatmala Project: CAG has exposed fraud in ‘Bharatmala’ project. Almost 100 percent increase in the cost of the road has also been revealed.
7)Diversion of Pension Scheme Funds:
Modi Government has diverted pension scheme funds to publicise other schemes, CAG report( Indian Express, Aug,10,2023).
8) CAG has exposed Jal Jeevan scam of ₹13,000 crore in Jammu and Kashmir.
India’ s Ranking
On Global Hunger Index, India ranked 111th of 125 countries.In the projection for 2022-23 shared by the Niti Aayog study, Bihar, Meghalaya and Jharkhand remain the states with the highest number of poor people.
Almost 100 million Dalits in India – or one third of their total number – continue to live in multidimensional poverty. According to the United Nations report of MPI, five out of six multidimensionally poor people are from lower tribes and castes.
Bank Frauds:
In the fiscal year 2023, the Reserve Bank of India (RBI) documented bank frauds exceeding 302.5 billion rupees, equivalent to INR 30,000 cr.
The losses of private banks are almost as high – thanks to the Chanda Kochhar, Rana Kapoors and PMC Bank heads. When DHFL caused a loss of Rs 34,615 crore, it hit 17 banks, including private and public. ABG Shipyard, a shipbuilding firm based in Gujarat (one cannot miss the irony) defrauded a consortium of 28 banks, both public and private, of Rs 22,800 crore (Jawar Sirca, The Wire).
Expenditure in Delhi during G-20
The allocated budget for the G-20 Summit was ₹990 crore.
the BJP government has spent 4,100 crores for the campaign on promoting the G-20 meetings in Delhi alone. These included erection of 800 bill boards with a picture of Prime Minister Narendra Modi(The Hindu, September 11,2023).
Non Performing Assests (NPAs)
The total NPAs of all scheduled commercial banks, ie, PSBs plus private and foreign banks, for the first eight years of Modi’s rule (2014-15 to 2021-22) to Rs 66.5 lakh crore
Unemployment
The job market remains depressing, especially for the youth. The Centre for Monitoring Indian Economy notes that the unemployment rate in the age group 20-24 years was 44.5% in the October-December 2023 quarter. For the age-group 25-29 years, it was at a 14 month high of 14.33( M.V.Rajeev Gowda & Akash Satyawati, the wire, 31Jan,2024).
Reduction in subsidies
In 2013-14, Union government subsidies accounted for 2.27% of the GDP. These now stand at 1.34% in 2023-24. Expenditure on education is less than 3% of GDP.(The Wire).
Press Freedom in India
India has fallen 11 places on the World Press Freedom Index to 161 out of 180 countries.
Flawed Democracy
India has been classified as a ‘flawed democracy’ as per the global democracy index of 2022.
In one case, the Supreme Court had termed the EC ‘toothless’.
Decline in internet growth
India’s internet growth continues to plummet, from double digit growth rates through 2016 to 2020, it slumped to about 4 percent in 2021 & 2022( Businessline).
Corruption complaints highest against Home Ministry
As per Central Vigilance Commission(CVC), 46643 complaints were received against Amit Shah’s Home Ministry in 2022( Deccan Herald, Aug,20,2023).
Multinational Companies left India
The Ministry of Commerce and Industry, in reply to a December 2021 question in Parliament, had said that 2,783 foreign companies ceased operations in India between 2014 and November 2021.
Indian millionaires left
The wall-street investment bank Morgan Stanley, 2018 bank report found that 23,000 Indian millionaires had left the country since 2014. More recently, a Global Wealth Migration Review report revealed that nearly 5,000 millionaires, or 2% of the total number of high net-worth individuals in India left the country in 2020 alone.(ET, Jun,19,2022).
From Kashmir to Kanyakumari in 9 years, the ruling dispensation has invested monetarily and morally in creating disorder and chaos in the country. Vendetta politics against opposition leaders has crushed the political system. Social system is broken down by Hindu vigilantism. Greed and biased attitude of some of the judges in the country has weakened the judicial system. Corporate servitude amplified.Corruption multiplied. Rising prices of essential commodities broke down the backbone of citizens. Inflation is touching the sky. Indians are leaving the country.
The poor are getting poorer, the rich are getting richer. The Modi Government is bankrupting the Middle Class of India by writing off 16 Lakh crore of private investors.
$10 ट्रिलियन इकोनॉमी का झूठा प्रचार
पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के सदस्य ने एएए मीडिया के नीलू व्यास को दिए एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अर्थशास्त्र की एबीसी नहीं आती. उन्होंने यह भी कहा कि 2022 चला गया है और $ 10 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा, $ 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकारों के झूठे प्रचार के अलावा कुछ नहीं है। हम, भारत के लोग, भाजपा नेताओं के मुंह से बार-बार सुनते आ रहे हैं कि 2030 में भारतीय अर्थव्यवस्था $ 10 ट्रिलियन की हो जाएगी। बिना किसी विश्वसनीय डेटा के इस तर्क को वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और हरदीप सिंह पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार। सरकार समर्थक मीडिया भी जोर-शोर से चिल्ला रहा है कि मोदी सरकार 2030 में इस लक्ष्य को हासिल करने जा रही है। इतना ही नहीं, बल्कि मोदी सरकार पांच सितारा होटलों में कार्यक्रम आयोजित कर रही है जहां मंत्री, नौकरशाह, बिजनेस टाइकून और बैंकर हैं। दर्शकों को यह बताते नहीं थक रहे कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। दिसंबर 2023 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की मौजूदा जीडीपी 3.73 ट्रिलियन डॉलर है। मोदी के नेतृत्व में भारत कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
आईएमएफ ऋण चिंता की बात यह है कि मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 205 लाख करोड़ का भारी कर्ज लिया है। हर भारतीय पर है 1.40 लाख का कर्ज (इकोनॉमिक्स टाइम्स)।
3) आयुष्मान भारत योजना: CAG ने ‘आयुष्मान भारत योजना’ में हुई धांधली का भी खुलासा किया है, जिसमें मृत लोगों को फर्जी तरीके से जीवित करके भुगतान किया गया है और 7.5 लाख लाभार्थियों को एक ही नंबर से जोड़ने के फर्जीवाड़े का भी खुलासा किया है। 88,760 मरीजों की इलाज के दौरान मौत हो गई.
4) टोल लूट: सीएजी ने टोल नियमों के उल्लंघन का खुलासा किया है और कहा है कि एनएचएआई ने गलत तरीके से रुपये वसूले हैं. यात्रियों से 132 करोड़ रु.
5) द्वारका एक्सप्रेसवे: सीएजी ने द्वारका एक्सप्रेसवे में भारी धांधली का खुलासा किया और सवाल उठाया कि सड़क बनाने की लागत रुपये तक कैसे पहुंच गई। प्रति किलोमीटर 250 करोड़ रु.
6) भारतमाला परियोजना: CAG ने ‘भारतमाला’ परियोजना में धोखाधड़ी का खुलासा किया है। सड़क की लागत में भी लगभग 100 फीसदी बढ़ोतरी की बात सामने आई है.
7)पेंशन योजनानिधि का विचलन मोदी सरकार ने पेंशन योजना के फंड को अन्य योजनाओं के प्रचार-प्रसार में लगा दिया है, सीएजी रिपोर्ट(इंडियन एक्सप्रेस, अगस्त,10,2023).
8) CAG ने जम्मू-कश्मीर में 13,000 करोड़ रुपये के जल जीवन घोटाले का खुलासा किया हैI
भारत की रैंकिंग
ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर, भारत 125 देशों में से 111वें स्थान पर है। नीति आयोग के अध्ययन द्वारा साझा किए गए 2022-23 के अनुमान में, बिहार, मेघालय और झारखंड सबसे अधिक गरीब लोगों वाले राज्य बने हुए हैं। भारत में लगभग 100 मिलियन दलित – या उनकी कुल संख्या का एक तिहाई – बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं। एमपीआई की संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार, छह बहुआयामी गरीब लोगों में से पांच निचली जनजातियों और जातियों से हैं। बैंक धोखाधड़ी वित्तीय वर्ष 2023 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 302.5 बिलियन रुपये से अधिक की बैंक धोखाधड़ी दर्ज की, जो 30,000 करोड़ रुपये के बराबर है। निजी बैंकों का घाटा लगभग उतना ही अधिक है – चंदा कोचर, राणा कपूर और पीएमसी बैंक प्रमुखों को धन्यवाद। जब डीएचएफएल को 34,615 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, तो इसकी मार निजी और सार्वजनिक समेत 17 बैंकों पर पड़ी. एबीजी शिपयार्ड, गुजरात स्थित एक जहाज निर्माण कंपनी (विडंबना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता) ने सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के 28 बैंकों के एक संघ को 22,800 करोड़ रुपये का चूना लगाया (जावर सिरका, द वायर)।
जी-20 के दौरान दिल्ली में व्यय जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए आवंटित बजट ₹990 करोड़ था। अकेले दिल्ली में जी-20 बैठकों के प्रचार-प्रसार के लिए भाजपा सरकार ने 4,100 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इनमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले 800 बिल बोर्ड का निर्माण शामिल था (द हिंदू, 11 सितंबर,2023)।
गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए): मोदी के शासन के पहले आठ वर्षों (2014-15 से 2021-22) के लिए सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, यानी पीएसबी और निजी और विदेशी बैंकों का कुल एनपीए 66.5 लाख करोड़ रुपये है।
बेरोजगारी
नौकरी बाजार निराशाजनक बना हुआ है, खासकर युवाओं के लिए। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी का कहना है कि अक्टूबर-दिसंबर 2023 तिमाही में 20-24 वर्ष आयु वर्ग में बेरोजगारी दर 44.5% थी। 25-29 वर्ष के आयु वर्ग के लिए, यह 14 महीने के उच्चतम 14.33 पर था (एम.वी.राजीव गौड़ा और आकाश सत्यवती, द वायर, 31 जनवरी,2024)।
सब्सिडी में कमी 2013-14 में, केंद्र सरकार की सब्सिडी सकल घरेलू उत्पाद का 2.27% थी। ये अब 2023-24 में 1.34% हैं। शिक्षा पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 3% से भी कम है।(द वायर) भारत में प्रेस की स्वतंत्रता विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 11 स्थान गिरकर 161वें स्थान पर आ गया है। दोषपूर्ण लोकतंत्र 2022 के वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक के अनुसार भारत को ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को ‘दंतहीन’ करार दिया था. इंटरनेट विकास में गिरावट भारत की इंटरनेट वृद्धि में लगातार गिरावट जारी है, 2016 से 2020 तक दोहरे अंकों की विकास दर से यह 2021 और 2022 में लगभग 4 प्रतिशत तक गिर गई (बिजनेसलाइन)।
गृह मंत्रालय के खिलाफ सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार की शिकायतें केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के अनुसार, 2022 में अमित शाह के गृह मंत्रालय के खिलाफ 46643 शिकायतें प्राप्त हुईं (डेक्कन हेराल्ड, अगस्त,20,2023)।
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ: भारत छोड़कर चली गईं वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने संसद में दिसंबर 2021 के एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि 2014 और नवंबर 2021 के बीच 2,783 विदेशी कंपनियों ने भारत में परिचालन बंद कर दीयाI
[02/02, 10:00] Kumar R: भारतीय करोड़पति चले गए वॉल-स्ट्रीट इन्वेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टेनली, 2018 बैंक रिपोर्ट में पाया गया कि 2014 के बाद से 23,000 भारतीय करोड़पतियों ने देश छोड़ दिया है। हाल ही में, ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू रिपोर्ट से पता चला है कि लगभग 5,000 करोड़पति, या उच्च नेट-नेट की कुल संख्या का 2% भारत में मूल्यवान व्यक्तियों ने 2020 में ही देश छोड़ दिया। (ईटी, जून, 19,2022)।
9 वर्षों में कश्मीर से कन्याकुमारी तक, सत्तारूढ़ व्यवस्था ने देश में अव्यवस्था और अराजकता पैदा करने में आर्थिक और नैतिक रूप से निवेश किया है। विपक्षी नेताओं के खिलाफ प्रतिशोध की राजनीति ने राजनीतिक व्यवस्था को कुचल दिया है। हिंदू सतर्कता से सामाजिक व्यवस्था टूट गई है। देश में कुछ न्यायाधीशों के लालच और पक्षपातपूर्ण रवैये ने न्यायिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया है। कॉर्पोरेट दासता बढ़ गई। भ्रष्टाचार बढ़ गया। आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने नागरिकों की कमर तोड़ दी। महंगाई आसमान छू रही है. गरीब और गरीब होते जा रहे हैं, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। मोदी सरकार निजी निवेशकों के 16 लाख करोड़ रुपये माफ कर भारत के मध्य वर्ग को दिवालिया बना रही है।
Read in English:
On 24th Feb, 2023 Devotees celebrated Sant Ravidas ji the 647th birth Anniversary. Sant Guru Ravidas ji was a symbol of revolt against untouchability. Saint Ravidas was born in 1377 AD in Varanasi, Uttar Pradesh, is also known as Raidas, Rohidas and Ruhidas. His birthplace is now known as Shri Guru Ravidas Janam Asthan. His father was Raghram, and his mother was Mata Ghurbinia. The traditional occupation of the caste in which Ravidas was born was shoe making, which was considered low caste at that time. His father also used to do the same traditional work. Saint Ravidas ji was the saint who taught people the lesson of love and harmony. Sant Ravidas ji dedicated his entire life to removing caste discrimination from the society and to social reform and social welfare works.
Sant Ravidas Ji became a symbol of opposition to untouchability in society by the higher caste people for lower caste people. Sant Ravidass Ji taught removal of social divisions of caste and gender, and promoted unity in the pursuit of personal spiritual freedoms.
Sant Ravidas ji also protested traditional Idol worship. His statement was,
“Jo Avinasi sabka karta, Wyapi reh, yo sab thaur re. Panch tat jin kiya psara, so yo hi kidhu aur re. Tu tau kehat hau yo hi karta, yanku manic krai re. Tarni Tarni shakti je yamai, to Aapn kyun na tirai re. Aamhi bhrose sab jag budha, suni pandit ki baat re. …Ya ki sev sool bhajai katai na sanshy fans re.” It’s means: The God, who is the master of whole world and omnipresent, and is completely present in five element of world ever, His represented could not be this stone idol.
In another place he described, “Pati tore puji rachavai, taran tran kahai re. Murti mahi basai parmesur, to paani mahi Tirai re.” It’s mean :
The test of the power of the Idol saying that If God dwells in Idol, he could be swim in water at least but it drowned itself. In fact, Ravidas has protested rituals, idol worship and blind faith which were in trend.
It is significant for the devotees to read the teachings of Shri Guru Ravidas ji and spread the message across the world.
24 फरवरी 2024 को भक्तों ने संत रविदास जी की 647वीं जयंती मनाई। संत गुरु रविदास जी छुआछूत के विरुद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। संत रविदास का जन्म 1377 ई. में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था, उन्हें रैदास, रोहिदास और रूहीदास के नाम से भी जाना जाता है। उनके जन्मस्थान को अब श्री गुरु रविदास जन्मस्थान के नाम से जाना जाता है। उनके पिता राघराम थे और माता माता घुरबिनिया थीं।
जिस जाति में रविदास का जन्म हुआ था उसका पारंपरिक व्यवसाय जूता बनाना था, जो उस समय निम्न जाति मानी जाती थी। उनके पिता भी यही पारंपरिक काम करते थे. संत रविदास जी लोगों को प्रेम और सद्भाव का पाठ पढ़ाने वाले संत थे। संत रविदास जी ने अपना पूरा जीवन समाज से जातिगत भेदभाव को दूर करने और समाज सुधार तथा समाज कल्याण कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।
संत रविदास जी समाज में उच्च जाति के लोगों द्वारा निचली जाति के लोगों के लिए की जाने वाली छुआछूत के विरोध के प्रतीक बन गये। संत रविदास जी ने जाति और लिंग के सामाजिक विभाजन को दूर करने की शिक्षा दी और व्यक्तिगत आध्यात्मिक स्वतंत्रता की खोज में एकता को बढ़ावा दिया।
संत रविदास जी ने पारंपरिक मूर्ति पूजा का भी विरोध किया। उनका कथन था,
“जो अविनासी सबका कर्ता, व्यापि रे, यो सब ठौर रे। पंच तत् जिन किया पसरा, सो यो ही किधु और रे। तू तौ कहत हौ यो ही करता, यंकु मानिक क्राय रे। तरनि तरनि शक्ति जे यमइ, तो आपन क्यूं न तिरै रे। आमहि भरोसे सब जग बूढ़ा, सुनि पंडित की बात रे। …या कि सेव सूल भजै कटै ना संशय फैंस रे।” इसके साधन:
जो ईश्वर संपूर्ण जगत का स्वामी और सर्वव्यापी है तथा पंचतत्वों में सर्वदा विद्यमान है, उसका प्रतिनिधित्व यह पत्थर की मूर्ति नहीं हो सकती।
एक अन्य स्थान पर उन्होंने वर्णन किया, “पति तोरे पूजि रचावै, तारन त्रान कहै रे। मूरति माहि बसै परमेसुर, तो पानी माहि तिरै रे।” इसका मतलब :मूर्ति की शक्ति की परख यह कहते हुए कि यदि मूर्ति में ईश्वर का वास है तो उसे पानी में भी तैराया जा सकता था, परंतु वह स्वयं डूब गई। दरअसल, रविदास ने प्रचलित कर्मकांड, मूर्ति पूजा और अंध विश्वास का विरोध किया था। भक्तों के लिए श्री गुरु रविदास जी की शिक्षाओं को पढ़ना और दुनिया भर में संदेश फैलाना महत्वपूर्ण है।
Deaf and Blind Dalit MPs in the Indian Parliament !
Dr. Rahul Kumar Balley, PhD
*** Kursi hai tumhara ye janaza to nahin hai
Kuchh kar nahin sakte to uter kyon nahin jaate!
-Irtiza Nishat
First of all, I presume that the Dalit MPs have no time to read this article. Secondly if they happen to read this, they would label me as an agent of the Congress or the BJP party. I do not care for these sorts of allegations. I shall always raise the voice of my people whenever I find an opportunity or a platform. I feel that every concerned Dalit should come forward to raise voice of the marginalised Dalits.
Dalit Representation in the Parliament
It is often seen that the Dalits leaders are allured by political parties either for plum posts or financial rewards. The majority of the Dalit leaders are chosen only to exploit the strength of the Dalits in the Dalit populated constituency. Political parties run by Upper Caste Hindus, generally, do not entertain closely the Dalit leaders unless or until he or she religiously follow their ideology and be ready always for causing callous damage to the interests of the Dalits at large. For Example, Chirag Paswan, a Dalit leader from Bihar went to Vaishno Devi to seek her blessings for his film. Such category of Dalit leaders is suitable to national political parties run by Upper Caste Hindus. Since the BJP backed by RSS came into power at the centre, the party has pruned the strength of the Dalits hence they are under-represented in the Parliament of India. Those who are in the BJP are voiceless, powerless and toothless. They cannot dare to even stand closer to Prime Minister Narender Modi. As per Home Minister Amit shah officials tweet in 2022, 52 Dalits Members of Parliament are in the BJP. Despite this, the Dalit Members of Parliament are unable to raise voice against atrocities being committed by Upper Caste Hindus in every state, district or village. The Dalits are subjected to all kinds of humiliations and insults at the hands of the Upper Caste politicians and administrators.
Dr. Rahul Balley M.A., PhD
Dr. Rahul Balley with Dr. Surendra Ajnat
Q. When did you start writing on Dr. Ambedkar and Buddhism? Explain briefly the names and work of dedicated people who devoted their whole life to spread the ideology of Dr. Ambedkar in context of Punjab. How you evaluate their work?
A. I started writing on Buddhism and Ambedkarism in early 1970’s. There are many people in Punjab who devoted their lives for Buddhism and Ambedkarism, but the first name that comes to my mind is that of Mr. Lahori Ram Balley
Saroj Rani, Associate Professor, M.A; PhD
Dr. Saroj Rani, Associate Professor, M.A; PhD
Dr. B. R. Ambedkar, the chief architect of the Indian constitution, a true celebrated champion of women emancipation in India saw a dream for gender equality. He laid down the foundation of concrete and sincere efforts by codifying the common Civil Code for Hindus and other sections of Indian society.
He stated that women should be given all-round development more importantly social education, their well -being and socio-cultural rights. He emphasized that each and every section of Indian women be given their due share and it is a must to maintain and protect dignity and modesty of women.
रंजीत कुमार गौतम
दिनांक – 26 नवंबर 2023 , दिन – रविवार को ग्राम – महमदपुर सैजनियां , जिला – शाहजहांपुर ( उत्तर प्रदेश ) में संविधान दिवस के पावन अवसर पर श्री एल. आर. बाली मेमोरियल एकेडमी की स्थापना कर इसका अनावरण किया गया।
इस समारोह में पूर्व प्रध्यापक श्री सुभाषचन्द्र कुशवाहा जी , मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए जिनके करकमलों द्वारा फीता काटकर संपूर्ण बौद्ध पध्दति के साथ इस संस्थान का उद्घाटन किया गया।
श्री राम कुमार , श्री चंद्रभूषण , श्री रामजुगन और श्री रंजीत कुमार गौतम विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए
Read in English:
Constitution Day also known as ‘Samvidhan Divas’, is celebrated in our country on 26th November every year to commemorate the adoption of the Constitution of India. On 26th November 1949, the Constituent Assembly of India adopted the Constitution of India, which came into effect from 26th January 1950. The Indian Constitution, with 395 articles, 22 parts, and 12 schedules.
The Preamble is like the introduction to the Constitution. It talks about the important values and ideas that the Constitution is built on, like freedom and justice. It’s a short but important part that guides the whole Constitution.
“WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens:
JUSTICE, social, economic, and political;
LIBERTY, of thought, expression, belief, faith, and worship;
EQUALITY, of status and of opportunity;
and to promote among them all
FRATERNITY, assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation;
IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this 26th day of November 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.”
Bharat Ratna Baba Saheb Dr. B.R. Ambedkar, as a chairman of the drafting committee, the father of Indian constitution, gave constitution to Indian that reflects the ideals of justice, liberty, equality, and fraternity. The Constitution of India is the supreme law that governs the nation. The constitution of India fosters a sense of unity in diversity and ensuring justice and equality for all citizens. It also enhances public awareness of the constitutional principles that form the basis of India’s democratic fabric.
संविधान दिवस जिसे ‘संविधान दिवस’ के नाम से भी जाना जाता है, भारत के संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में हर साल 26 नवंबर को हमारे देश में मनाया जाता है। 26 नवंबर 1949 को, भारत की संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया, जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। भारतीय संविधान, 395 अनुच्छेदों, 22 भागों और 12 अनुसूचियों के साथ। प्रस्तावना संविधान के परिचय की तरह है। यह उन महत्वपूर्ण मूल्यों और विचारों के बारे में बात करता है जिन पर संविधान बना है, जैसे स्वतंत्रता और न्याय। यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा है जो पूरे संविधान का मार्गदर्शन करता है।
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और इसके सभी नागरिकों को सुरक्षित करने का गंभीरता से संकल्प लेते हैं:
न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक;
स्वतंत्रता, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास और पूजा की;
समानता, स्थिति और अवसर की;
और उन सभी के बीच प्रचार करना
बंधुत्व, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करना;
इस 26 नवंबर 1949 को हमारी संविधान सभा में इस संविधान को अपनाएं, अधिनियमित करें और स्वयं को सौंप दें”।
भारत रत्न बाबा साहब डॉ. बी.आर. भारतीय संविधान के जनक, प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में अम्बेडकर ने भारतीय संविधान दिया जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को दर्शाता है। भारत का संविधान देश को संचालित करने वाला सर्वोच्च कानून है। भारत का संविधान विविधता में एकता की भावना को बढ़ावा देता है और सभी नागरिकों के लिए न्याय और समानता सुनिश्चित करता है। यह उन संवैधानिक सिद्धांतों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता भी बढ़ाता है जो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे का आधार बनते हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर, डॉ. बी.आर. को श्रद्धांजलि देते हुए भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के लॉन में डॉ. बीआर अम्बेडकर की भव्य 7 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया।
Harbans Lal Virdee
Sadly, our respected leader Lahori Ram Balley expired on 06.07.2023 at his residence, Abadpura, Jalandhar. His departure from the world has left all Ambedkarites and Buddhists orphans. I could not attend funeral as I was in London during those days. I used to hear Balley Saheb name from our parents before I settled in the United Kingdom as a permanent citizen. Since my childhood, I found that Balley Saheb dedicated his whole life for spreading the message of Dr. Ambedkar whom he met several times when he was in Delhi. Balley Saheb also met Baba Saheb Dr. Ambedkar with KC Sulekh. Balley Saheb was born in Nawanshahr now district in Punjab on 20 July,1930. He left three daughters- Shakuntla Nagar , Sunita Bhardwaj and Sujata Sallan and two sons Dr Rahul Kumar Balley and Anand Kumar Balley. His wife Mrs Ajit Kaur Balley died on 16 March,2014.
She was a pious lady who stood by Balley Saheb like a shadow. Whenever I used to come to India, I visited Balley Saheb to discuss several important issues, she was the one who took care of all guests – food and lodging. Balley Saheb was busy in publishing Bheem Patrika and books. Balley Saheb knew Urdu, English, Punjabi, Hindi and Persian. I always found that Balley Saheb office in city and later in Ambedkar Bhawan was always full with people; workers, leaders and followers. Balley Saheb was shining like a star. I witnessed people from far off villages used to come to Balley Saheb to seek advice and suggestions. Balley Saheb was a fearless, staunch, dedicated and honest Ambedkarite who asked for financial assistance to publish books by Dr Ambedkar or on Dr Ambedkar.
Sujata Sallan
When I heard from my brother Rahul that papa Ji left us I was not suprised because before his death I stayed two months with him . I knew father sahib getting very weak . My parents always told me don’t cry when we leave . My father always told me that you are captain of the ship , we know you will be strong after us . Some time he says you are my third son . He was a caring father. We could feel his love and care but he didn’t show off . He was real person, never said fake stories .
He was very punctual ,his time was his real money . I went to Canada in 1982 to marry . My mother asked me to call her everyday . When I called he said your mother was waiting for your call . After I finished my talk my father sahib said you people do loose talk . I said my phone is medicine for her then he laughed loudly . He never wasted his time Every morning He woke up at 5 then he started writing in his office . My mother took care of him very well . He ate healthy food. People ask me sometimes what’s the reason for his good long life . He eat on time and never went for parties . His personality shows that he was a special man from inside and out sides . He had so many suprises in his life . He had very tuff time from his relatives and people but he never cared . He achieved his goal . He died the way he wanted , a very few people could be lucky like him .
My Beloved father has expired but he is still around me !
A grieved son (Dr. Rahul Kumar Balley)
He is no more; this was told to me by Shri Baldev Raj Bhardwaj (our respected brother -in-law) on 06 July,2023. Same morning, I spoke with my beloved father who told me nothing to worry, just cough and fever. He also told he took medicine and it would take few days to recover completely. For a moment I could not believe this disastrous news. How can this happen, my great father was fine a few minutes ago. How can he leave us? All these questions still haunt me. I am unable to sleep well since the day my beloved father left this world. I always look at the window of my flat in Delhi and feel like calling him at 4pm. This was the time when, without fail, I used to call him every day to know about his health.
He was a great writer, speaker whose heart and mind throbbed for the deprived section of the society. He was a true Ambedkarite and Buddhist who fulfilled his promise given to Dr. B.R. Ambedkar in 1956 at his Delhi residence. He never thought of anything else than how to spread the message of Dr. Ambedkar among the oppressed sections of the society.
रंजीत कुमार गौतम
B.A. , M.A. (Political science and International) गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय
एल. आर. बाली उस महान व्यक्तित्व का नाम है जिसने अपनी प्रज्वलित मसाल से न जाने कितने अंधेरी घरों में रोशनी पैदा किया और इस मानव जगत को सकारात्मक और प्रगतिशील दिशा प्रदान किया। बाली साहब प्रायः अपने ओजस्वी भाषणों से समस्त नौजवानों में उत्साह उत्पन्न किया करते थे और उनकी लेखनी सदैव तर्कशीलता , विद्वता , दार्शनिकता और यथार्थवादिता से परिपूर्ण हुआ करती थी जो मनुष्य को सही और सकारात्मक दिशा प्रशस्त करने में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करती हैं। परंतु बाली साहब जैसे महान व्यक्तित्व का नाम किसी विशेष क्षेत्र तक ही सीमित नहीं किया जा सकता । उनका योगदान विभिन्न क्षेत्रों में बड़ा ही उत्कृष्ट रहा है। महान लेखक व पत्रकार , महान समाज सुधारक , महान क्रांतिकारी योद्धा , महान दार्शनिक व विचारक , महान समाज सेवक इत्यादि जैसे विभिन्न रूपों में उन्होंने अपने जीवन के अंतिम सांस तक में विशेष योगदान दिया जो की ऐतिहासिक पृष्ठों पर सदैव स्वर्णिम अक्षरों में विद्यमान और वर्णित रहेगा। अतः उपरोक्त विभिन्न रूपों में बाली साहब ने अपना योगदान कैसे दिया ? मैं संक्षिप्त रूप से वर्णन करना चाहूंगा।
महान लेखक व पत्रकार :— 14 अप्रैल सन् 1958 को बाली साहब ने भी पत्रिका की स्थापना किया और तब से अपने जीवन की अंतिम क्षणों तक वे स्वयं इस पत्रिका के संपादक रहे।
Dr. Rahul Kumar Balley, Ph.D
-Dr. Rahul Kumar Balley- The Asian Independent UK, recently an article named: ‘There is a case ‘We the people ‘to embrace a new constitution’ written by Bibek Debroy, close aide and economic advisor to Indian Prime Minister Narendra Modi published by several national dailies in India.
The author suggests that a new constitution should be drafted and implemented. One cannot expect more than this from a right-wing supporter who, without any substantial reason is suggesting to change the constitution. One can also understand the abhorrent idea of such people who simply does not digest the credit given by national and international organizations as well as people to Baba Saheb Dr B.R. Ambedkar, the architect of Indian Constitution.
Today, the name of Baba Saheb Ambedkar has become a household name. The recognition given by international universities to the work and contribution of Baba Saheb Dr. B.R. Ambedkar is beyond their tolerance. The international universities feel proud in establishing chairs in the name of Dr. Ambedkar. More students are found researching the work of Dr. Ambedkar. The United Kingdom, Canadian universities installed bust of Dr. Ambedkar in the campus. More are under process to give full recognition to Dr. Ambedkar’s work. The fact is that not a single Brahmin intellectual could match intellectual caliber of Dr. Ambedkar.
द्वारका भारती
अंबेडकर मिशन के पुरोधा एल. आर. बाली हमारे बीच नहीं रहे. उनका जाना मानो एक शताब्दी का झटके से गुज़र जाना है. लगभग 9 दशकों से भी ज्यादा वे हमारे बीच डॉ. अंबेडकर के एक सच्चे सपूत की भांति विचरते रहे. उनका लिखा डेरों बारे साहित्य आज एक ऐसा कारनामा बन चुका है, जिसकी चर्चा कभी धूमिल नहीं होगी. हम इस बात को नकार नहीं सकते कि जब- जब भी इस देश में डॉ. अंबेडकर जैसे व्यक्तित्व को याद किया जाएगा, उनकी परछाईं की तरह एल. आर. बाली भी याद किए जाते रहेंगे.
वे पंजाब की ज़रखेज़ धरती के बेटे थे. एक ऐसी धरती जो अनाज के साथ- साथ जुझारू व्यक्तित्व भी पैदा करती रही है. अन्याय के खिलाफ़ पैदा होने वाले वीर सपूतों में एल. आर. बाली का नाम इन अर्थों में अग्रणी रहेगा, क्योंकि उन्होंने डॉ. अंबेडकर जैसे क्रांतिकारी महान पुरुष से प्रेरित होकर अपना पथ तय किया था.
समता सैनिक, रंजना वासे, नागपुर (महाराष्ट्र)
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर विचार धारा को जिन्होने तन मन धन से अपना जीवन अर्पित करने वाले स्मृतीशेष एल. आर. बाली साहब जो भारत के प्रसिध्द लेखक, विचारवंत, विद्वत्ता पूर्ण प्रभावी वक्ता, लढय्ये, आंबेडकरी “भीमपत्रिका” के संपादक आदरणीय एल. आर. बाली साहब महत्वपुर्ण व्यक्तित्व है।
दिल्ली मे रहते हुये डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महान व्यक्तित्व को भली भांती जानने, उनकी काम करने की विधी को समझने, उनकी विचारधारा से ज्ञानवान होने और उनके आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने का बालीजी को भरपूर अवसर मिला। बालीजी कहते है, “मेरे अन्दर यदि कोई गुण है तो वह डॉ. आंबेडकर की शिक्षाओं के कारण है“। जैसा की डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय समाज का आदर्श समाज में रूपांतरण करना चाहते थे। डॉ. आंबेडकर जी से बाली साहब ने जो भी गुण हासील किये, उसका उपयोग उन्होने अपने स्वार्थ के लिए न करते हुए संपुर्ण भारतीय के भलाई के लिए किया ।
-by Bheem Patrika Correspondent
Lord Ram is being re-established by the ruling party in the minds of the citizens of India. It does not matter to the BJP/RSS how much Ram is worshipped in comparison to other Hindu Gods. A majority of scholars in India believe firmly that religion is a personal thing. And it is also emphasized in the constitution of India. Article 25 of the Indian Constitution guarantees the right to profess, practices and propagate their religion.
Name of Hindu Gods | Percentage of people worshipping (Total Hindu population) |
Shiva | 44% |
Hanuman | 35% |
Ganesha | 32% |
Lakshmi | 28% |
Krishna | 21% |
Kali | 20% |
Lord Ram | 17% |
Ref: Pew Research Center, Religion in India:
Tolerance and Segregation, Jun 29, 2021. The data shows that Ram is behind other Hindu Gods in terms of worship. The question here, why is the BJP promoting Ram and ignoring other Hindu Gods. The educated class of India must find answer to this question. India is passing through critical times. Propagators of Hindutva ideology is bent on disintegrating the social fiber of the country which would lead to ruination. The so-called Hindutva adherents does not understand that it would also affect the life and business of Hindus at large since they are mostly engaged in various kinds of businesses. Hindus are more vulnerable than those who have nothing valuable to lose. The sooner social unrest on the basis of religion is stopped the better it would be for the well- being of the country.
भारत में केवल 17% हिंदू ही भगवान राम की पूजा करते हैं I
-भीम पत्रिका संवाददाता द्वारा
सत्तारूढ़ दल द्वारा भारत के नागरिकों के मन में भगवान राम को पुनः स्थापित किया जा रहा है। भाजपा/आरएसएस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अन्य हिंदू देवताओं की तुलना में राम की कितनी पूजा की जाती है।भारत में अधिकांश विद्वान मानते हैं कि धर्म एक व्यक्तिगत चीज़ है। और भारत के संविधान में भी इस पर जोर दिया गया है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने के अधिकार की गारंटी देता है।
Name of Hindu Gods | Percentage of people worshipping (Total Hindu population) |
Shiva | 44% |
Hanuman | 35% |
Ganesha | 32% |
Lakshmi | 28% |
Krishna | 21% |
Kali | 20% |
Lord Ram | 17% |
Ref: Pew Research Center, Religion in India: Tolerance and Segregation, Jun 29, 2021
आंकड़ों से पता चलता है कि पूजा के मामले में राम अन्य हिंदू देवताओं से पीछे हैं। यहां सवाल यह है कि भाजपा राम को बढ़ावा क्यों दे रही है और अन्य हिंदू देवताओं की अनदेखी क्यों कर रही है। भारत के शिक्षित वर्ग को इस प्रश्न का उत्तर अवश्य खोजना चाहिए। भारत नाजुक दौर से गुजर रहा है. हिंदुत्व विचारधारा के प्रचारक देश के सामाजिक ताने-बाने को विघटित करने पर तुले हुए हैं, जिससे देश बर्बाद हो जाएगा। तथाकथित हिंदुत्व के अनुयायी यह नहीं समझते हैं कि इससे बड़े पैमाने पर हिंदुओं के जीवन और व्यवसाय पर भी असर पड़ेगा क्योंकि वे ज्यादातर विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में लगे हुए हैं। हिंदू उन लोगों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं जिनके पास खोने के लिए कुछ भी मूल्यवान नहीं है। धर्म के आधार पर सामाजिक अशांति को जितनी जल्दी रोका जाए उतना ही देश की भलाई के लिए बेहतर होगा।
(हिंदी अनुवाद श्री बी.आर. भारद्वाज द्वारा)
आल इंडिया समता सैनिक दल (रजि.), उत्तर प्रदेश इकाई * के तत्वावधान में दिनांक – 13 मार्च 2024, दिन- बुधवार, स्थान- श्री एल. आर. बाली मेमोरियल एकेडमी, ग्राम – महमदपुर सैजनियां, जिला शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश ) में * आल इंडिया समता सैनिक दल के 97वें स्थापना दिवस समारोह* का आयोजन किया गया।
भारतीय संविधान विश्व का अद्वितीय एवं सर्वश्रेष्ठ कानूनी दस्तावेज
Baldev Raj Bhardwaj
अंबेडकर मिशन सोसायटी पंजाब (रजि.) की ओर से 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र दिवस को समर्पित ‘भारतीय संविधान और लोकतंत्र’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर की चरण स्पर्श भूमि अंबेडकर भवन में किया गया, जिसमें प्रख्यात बुद्धिजीवियों और दर्शकों ने भाग लिया। इस चर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर बलबीर, सेवानिवृत्त प्रमुख, स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग, दोआबा कॉलेज जालंधर ने भाग लिया। प्रोफेसर बलबीर ने अपने ज्ञानवर्धक भाषण में कहा कि डाॅ. बीआर अंबेडकर संविधान के मुख्य वास्तुकार हैं और उनके मार्गदर्शन में बनाया गया भारतीय संविधान दुनिया का सबसे अच्छा और व्यापक कानूनी दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि इसकी प्रस्तावना भारतीय संविधान की आत्मा है। इसने भारत में समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा स्थापित करने का प्रयास किया है।
Bhikkhu Sangha of Punjab was invited for Bhojan Dana at Satnampura, Phagwara, Punjab, by Mr. Harbans Virdee.
Inauguration ceremony of Shri L R BALLEY MEMORIAL ACADEMY
The 19-foot statue, named “Statue of Equality”, has been made by renowned artist and sculptor Ram Sutar. Millions of Ambedkarites and Buddhists participated across the world. It is a great achievement for Ambedkarites and Buddhists that the message of Dr. Baba Saheb of equality, fraternity and liberty is flourishing in the United States of America.
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