ACTIVITIES “संविधान केवल वकीलों का दस्तावेज नहीं है बल्कि यह जीवन का एक माध्यम है.” – डॉ. बी.आर.अम्बेडकर Seminar at Ambedkar Bhawan, Jalandhar (Punjab) भारतीय संविधान कानूनी विशेषज्ञों की सर्वोत्तम रचना – एडवोकेट रंजीतसंसदीय लोकतंत्र के लिए संविधान की रक्षा जरूरी – प्रो. बलबीर जालंधर: अंबेडकरी संगठनों, अम्बेडकर भवन ट्रस्ट (रजि.), अंबेडकर मिशन सोसाइटी पंजाब (रजि.) और ऑल इंडिया समता सैनिक दल (रजि.) की पंजाब इकाई द्वारा अंबेडकर भवन में ‘भारतीय संविधान को दरपेश मौजूदा चुनौतियाँ और समाधान’ विषय पर एक सेमिनार आयोजित किया गया, जिसमें एडवोकेट रंजीत कुमार, पूर्व अध्यक्ष, जिला बार एसोसिएशन, होशियारपुर और प्रोफेसर बलबीर एम.फिल. एलएलबी, सेवानिवृत्त प्रमुख, स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग, दोआबा कॉलेज, जालंधर ने मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया। प्रधान मंत्री के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय द्वारा भारतीय संविधान को बदलने के लिए समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख पर टिप्पणी करते हुए एडवोकेट रंजीत कुमार ने कहा कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, यह भारत के सभी नागरिकों के जीवन में समानता, स्वतंत्रता, न्याय और समानता के सिद्धांत पर आधारित एक कल्याणकारी राज्य प्रणाली की स्थापना का गारंटर है। ये सर्वश्रेष्ठ कानूनी विशेषज्ञ बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर और उनके सहयोगीओं की सर्वोच्च रचना है। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में संवैधानिक कानून राजाओं और राजनीतिक नेताओं के निजी हितों की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि देश के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए होते हैं। इस संबंध में भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकार प्रत्येक नागरिक को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं। उनसे पहले प्रसिद्ध विद्वान प्रो. बलबीर ने कहा कि प्रारम्भ में ही निहित ‘प्रस्तावना’ भारतीय संविधान की पहचान एवं एकरूपता को उजागर करती है। धर्मनिरपेक्षता, सभी नागरिकों को सभी क्षेत्रों में समान अवसर, स्वतंत्र जीवन जीने की अवधारणा, विभिन्न संस्कृतियों के बीच पारस्परिक घनिष्ठता स्थापित करने में भारतीय संविधान का विशेष एवं महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि संविधान अभी तक पूरी तरह से लागू ही नहीं हुआ है, जबकि निजी हितों की पूर्ति के लिए इसे बदलने की बात होनी शुरू हो गयी है। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे स्पष्ट और विस्तृत कानूनी दस्तावेज़ है। प्रो बलबीर ने कहा कि अमेरिका का संविधान 234 साल पहले 1789 में लागू हुआ था, जिसमें सिर्फ 7 अनुच्छेद हैं, लेकिन वहां के शासकों ने इसे ईमानदारी से लागू किया है। परिणामस्वरूप, अमेरिका को एक बेमिसाल लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संसद सर्वोच्च (संप्रभु) नहीं है। भारतीय संविधान के अनुसार, न्यायपालिका यानी भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अपने द्वारा बनाए गए कानूनों की समीक्षा करने का अधिकार है। भारतीय संविधान ने अत्याचार को रोकने के लिए संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक-दूसरे पर निर्भर बना दिया है। मुख्य अतिथियों का सम्मान करते अंबेडकरी संगठनों के नेता। दोनों सामाजिक चिंतकों एवं बुद्धिजीवी वक्ताओं ने भारतीय संविधान के समक्ष उपस्थित वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए जनहित के लिए जनजागरूकता पैदा करने, तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक सोच को बढ़ाने तथा वैकल्पिक जनहितकारी सोशल मीडिया के माध्यम से बाबा साहेब की सोच को विकसित करने पर जोर दिया, जिसे उन्होंने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा की आखिरी बैठक को संबोधित करते हुए व्यक्त किया था। डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए एक मजबूत विपक्षी दल, नायक पूजा से बचना, सुचारू और निष्पक्ष चुनाव प्रबंधन, अमीर लोगों से चुनावी प्रक्रिया की सुरक्षा, वोट के उचित उपयोग की गारंटी और राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र में स्थानांतरण का प्रावधान लागू करना आवश्यक है। कार्यक्रम के अंत में सेमिनार में शामिल सभी प्रतिभागियों ने हाथ उठाकर हर हाल में भारतीय संविधान की रक्षा करने पर सहमति जताई। मैडम सुदेश कल्याण ने मुख्य वक्ताओं का परिचय दिया और अतिथियों का स्वागत किया। पूर्व डीपीआई (कॉलेजों ) प्रोफेसर सोहनलाल ने सभी को धन्यवाद दिया और डॉ. जीसी कौल ने मंच का बहुत अच्छे से संचालन किया। इस अवसर पर चरणदास संधू, बलदेव राज भारद्वाज, हरभजन निमता , डाॅ. मोहिंदर संधू, परमिंदर सिंह खुतन, रमेश चंद्र पूर्व राजदूत, परमजीत पम्मी, डॉ. एसपी सिंह, डॉ. सुरिंदर पाल, प्रो. जोधा मॉल, चरणजीत सिंह, पिशोरी लाल संधू, डाॅ. मोहित, प्रो. अरिंदर सिंह, राजेश बिरदी, बलविंदर पुआर, एमएल डोगरा, कृष्ण कल्याण, इंजीनियर जसवन्त राय, हुसन लाल, राम नाथ सुंडा, राम लाल दास, मलकीत सिंह, सेवा सिंह, मास्टर जीत राम, प्रो. अश्विनी जस्सल, एचएस काजल, विशाल गोरका, इंजीनियर करमजीत सिंह आदि मौजूद थे। यह जानकारी अंबेडकर मिशन सोसायटी पंजाब (रजि.) के महासचिव बलदेव राज भारद्वाज ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से दी। बलदेव राज भारद्वाज महासचिव – अंबेडकर मिशन सोसायटी पंजाब (रजि.)
Morality is the main foundation of Ambedkarite movement – Sh. Harish Chahande
ACTIVITIES “So long as you do not achieve social liberty, whatever freedom is provided by the law is of no avail to you.” – Dr. B. R. Ambedkar “Morality is the main foundation of Ambedkarite movement” – Harish Chahande A Statement by Senior Samata Sainik Harish Chahande at the Shri L. R. Balley Memorial Meeting. Nagpur: Morality has a special place in Buddha Dhamma. On the strength of this morality, Dr. Babasaheb Ambedkar started the movement and made many movements successful. Recognizing the importance of ethics, the first class in the weekly program he gave in the Constitution of Samata Sainik Dal was on Morality. Therefore, veteran Samata Sainik Harish Chahande asserted that morality is the foundation of the Ambedkarite movement. He was speaking at the The senior Ambedkari thinker L. R. Balley memorial meeting. On behalf of All India Samata Sainik Dal (Reg.) Nagpur district was organized Ambedkarite thinker L.R. Balley memorial meeting, under the chairmanship of district president Kantilal Bhange, the program of tribute meeting was organized in Dr. Ambedkar Cultural Hall Nagpur. All India Samata Sainik Dal Vice President Ramrao Javale, Ex. President Harish Chahande, General Secretary Ashok Shende, Treasurer J. E. Shende, Office Secretary Pragyakar Chandankhede, Maharashtra Women wing Chief Ujwala Uke, Bhadanta Dhammasarathy Mahathero and other dignitaries were present. General Secretary of the organization Ashok Shende said, Although Dr. Babasaheb Ambedkar was born in Mahu (Madhya Pradesh), he considered Maharashtra as his karmic land and especially loved the city of Nagpur, so he took initiation & embarassed Buddhism in this city. But after the death of Babasaheb Ambedkar, the Ambedkarite movement from Nagpur city got lost. Today the governance of the country is being run from Nagpur. On the one hand, there is a Stupa like Diksha Bhoomi that conveys the message of peace, while in the same city, there is an office of an unregistered organization that sows the seeds of dirty politics in the country and holds the country’s leadership in their hands. This is a very sad matter. All the organizations working in the name of Babasaheb Ambedkar need to work together. All India Samata Sainik Dal will definitely take initiative for this. And this is An Ambedkari thinker L.R. Balley like will be a true tribute. President of the program Kantilal Bhange said that, Samata Sainik Dal is taking the initiative to create a wise citizen as expected by Dr. Babasaheb Ambedkar. Therefore, the youth of every household must become a soldier of Samata Sainik Dal that it will be a true tribute to Dr. Babasaheb Ambedkar and Late L. R. Balley who took the axis of his movement forward on his shoulders. Bhadanta Dhammasarathy Mahathero, Amit Indurkar, Vinayakrao Jamgade, Ranjana Wase, Ujwala Uke, former IAS Officer Kishore Gajbhiye, Takshak Chahande, Prashik Anand, Sunil Sariputta, Nanaji Gaikwad, Karunakar Uke also expressed their condolences in the program. A large number of Samata soldiers and citizens of the city were present in the tribute program. The program was moderated by Rahul Somkuvar and introduced by Pragyakar Chandankhede. Sanjay Durugkar thanked the attendees.
Dr. Surender Agyat
“Men are mortal. So are ideas. An idea needs propagation as much as a plant needs watering. Otherwise both will wither and die.” – Dr. B. R. Ambedkar एल. आर. बाली : अविस्मरणीय स्मृतियां डॉ. सुरेन्द्र अज्ञात श्री एल. आर. बाली, पर लिखने बैठा हूं, पर मेरी स्थिति कवि के शब्दों में यह है : ” क्या भूलूं क्या याद करूं मैं ?” जिस व्यक्ति से आधी सदी से भी ज्यादा समय का घनिष्ठ संबंध रहा हो, उससे संबंधित यादों को लिखते समय ऐसा होना स्वाभाविक ही है. बाली साहब कुशल और ओजस्वी वक्ता थे. वस्तुतः मैं उनका 1967 में बंगा में दिया एक भाषण सुन कर ही सर्वतः प्रथम उनके प्रति आकृष्ट हुआ था. भाषण था तो राजनीतिक पर उसमें बुद्धिवाद का भी बहुत बड़ा अंश था. उस भाषण में रणजीत सिंह के राज्य में दलितों की अवस्था की बाबत की गई उनकी टिप्पणी इतनी ऐतिहासिक और हृदय स्पर्शी थी कि उसके 20-25 वर्ष बाद ‘नवां ज़माना’ के संपादकीय में जगजीत सिंह आनन्द ने उसे बाली साहब के बंगा में दिए भाषण के हवाले से उद्धृत किया था. वह संपादकीय मैंने बाली साहब को डाक द्वारा भेजा भी था, जो उनके कागज़ों- पत्रों में कहीं विद्यमान होगा. बाली साहब के भाषण को सुनकर मुझसे पहले भी एक अन्य गैर – दलित उन पर फिदा हुआ था – वह थे नवांशहर के महाशय कृष्ण कुमार बोधी. वह आर्यसमाजी थे परन्तु 1956 में जब उन्होंने बाली साहब का भाषण सुना तो वह सदा के लिए बौद्ध एवं अंबेडकरी बन गए – नवांशहर का अंबेडकर – भवन उन्हीं के प्रयत्नों के फलस्वरूप अस्तित्व में आया था. जब गैर-दलित तक उनके स्पष्ट, बुद्धिवादी और ओजस्वी भाषणों से इस तरह प्रभावित हो जाते थे तो दलितों पर उनके भाषणों के प्रभाव का तो कहना ही क्या है ? 1967 का बाली साहब का प्रभाव तब और ज्यादा बढ़ गया जब 1970-71 में मैंने उनकी ‘डॉ. अंबेडकर : जीवन और मिशन’ (पंजाबी में) पुस्तक पढ़ी. इसे पढ़ने के कुछ समय बाद मैं बीमार पढ़ गया – शायद टाइफायड था. बुखार के दौरान उक्त पुस्तक के दृश्य, उसमें अंकित बातें, मेरे दिमाग में घूमती रहतीं. वह जितने प्रबल वक्ता थे, उतने ही कलम के धनी भी थे. 1973-74 वह वर्ष था जब मैं उनसे पहली बार मिला और यह मिलन निरन्तर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक चला. उनसे मेरी अंतिम बातचीत एक जुलाई के आसपास फोन पर हुई थी और जिस विषय पर चर्चा हुई थी, उस पर आगे और विचार 9 जुलाई को करना था, परन्तु 6 जुलाई को अचानक वह हम से सदा के लिए बिछुड़ गए ! 1973-74 में मैं गढ़शंकर ( जिला होशियारपुर ) स्थित खालसा कॉलेज में पढ़ाता था. छात्रों के एक दल ने प्रिंसीपल से कहा कि हमें डॉ. अंबेडकर का जन्म दिन मनाना है. प्रिंसीपल ने उन्हें मेरे पास भेज दिया क्योंकि मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का इन्चार्ज था. बात हुई मुख्य वक्ता को बुलाने की. बाली साहब का नाम सभी को स्वीकार था. कार्यक्रम हुआ. बाद में मुख्य अतिथि के साथ स्टाफ का चाय-पान था. इस दौरान मैंने बाली साहब से बातचीत की. उन्हें बताया कि मेरे लेख ‘सरिता’ पत्रिका में छपते हैं और पिछले दिनों ‘गायत्री मंत्र’ पर लिखा लेख चर्चा में काफी रहा है. वह बोले ‘क्या वह आपका लेख है ? मैंने काट कर फाइल में लगाया हुआ है. आप किसी दिन जालन्धर आएं बैठकर और चर्चा करेंगे. ” कुछ दिनों बाद मैं उनके दफ्तर पहुंचा, जो तब ज्योति सिनेमा के पास हुआ करता था. यह थी शुरूआत. बाली साहब निष्ठावान् बौद्ध थे, बल्कि कहना चाहिए कि बौद्धों के नेता थे. मैंने जब अंबेडकर साहित्य पढ़ना शुरू किया, तब बुद्धइज़्म का ज़िक्र आया करता था. एक दिन बाली साहब के घर बैठक में बैठे थे कि बातचीत के दौरान मैंने कहा कि बुद्धइज़्म में ‘यह’ है, उसमें ‘वह’ है. मुझे तो यह सब तर्कहीन एवं अंधविश्वासपूर्ण लगता है, जिसे मैं स्वीकार नहीं कर सकता, तो वह बोले कि हम भी यह सब स्वीकार नहीं करते. हम तो बुद्धइज़्म का वह रूप स्वीकार करते हैं जो बाबा साहब ने अपनी पुस्तक ‘The Buddha and His Dhamma ‘ में प्रस्तुत किया है. यह कहकर उन्होंने पास ही खड़े अपने एक कर्मचारी से कहा जाओ और हज़ारा राम बोधी के घर से इस पुस्तक की एक कापी ले आओ – पुस्तक का नाम उन्होंने कागज़ पर लिख कर उसे थमा दिया. वह पुस्तक मैंने जल्दी-जल्दी पढ़ डाली और बुद्धइज़्म पर आज तक जो लिखा है, उसी के प्रकाश में लिखा है. इसी दौरान मई 1977 में मेरी व सोमा सबलोक की शादी का अवसर पैदा हो गया. बाली साहब से बात की. बोले – ” बौद्ध रीति से शादी संभव है.” मैंने कहा कि “मैं बुद्धइज़्म को तो स्वीकार करता हूं. परन्तु भिक्षुवाद को नहीं.” वह बोले – “भिक्षुवाद को तो बाबा साहब स्वयं नापसंद करते थे. उनका कहना है कि निष्ठावान् एवं चरित्रवान् गृहस्थ व्यक्ति को विवाह आदि संपन्न कराने चाहिए, जहां तक कि वह व्यक्ति दीक्षा देने का भी अधिकारी है. बाबा साहब ने अपने 10 लाख अनुयायियों को 1956 में स्वयं ही नागपुर में दीक्षा दी थी, किसी भिक्षु ने नहीं दिलाई थी. ” बाली साहब आगे कहने लगे – ” मैं स्वयं शादी संपन्न करूंगा. हम कुछ प्रतिज्ञाएं पति-पत्नी से करवाते हैं, जो कागज़ पर लिखी रहती हैं और उन पर पति-पत्नी एवं साक्षी के हस्ताक्षर करवाते हैं. इसमें भिक्षु की कोई भूमिका नहीं होती और न ही उसे हम बुलाते हैं. ” यह निश्चित होने पर 29 मई को बाली साहब आए और बहुत बड़े जनसमुदाय के समक्ष हमारी शादी संपन्न कराई. जहां तक मुझे याद है, उनके दोनों बेटों की शादियां भी इसी तरह संपन्न हुई थीं, क्योंकि मैं दोनों शादियों में सपत्नीक उपस्थित था. मतलब यह कि बाली साहब जो कहते थे, वही करते थे. वे हाथी के खाने के और दिखाने के अलग-अलग दांतों में विश्वास नहीं करते थे. खेद है, अब प्राय: सर्वत्र इसके विपरीत ही हो रहा है. नेता में मौके की नज़ाकत को समझते हुए तत्काल निर्णय लेने की क्षमता होती
Last Editorial of Shri L. R. Balley Ji
Shri L. R. Balley Former Editor of “Bheem Patrika” Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence. – Dr. B. R. Ambedkar श्री एल.आर.बाली जी का अंतिम संपादकीय ! आरक्षण घोटाला जब कोई कहता है कि वह अनुसूचित जाति का है तो उससे नफ़रत शुरू हो जाती है, इन्हीं नफ़रत करने वालों की काली करतूत देखिए. पंजाब में अनुसूचित जातियों की सूची में निम्नलिखित जातियां आती हैं : (1) आदि धर्मी (2) वाल्मीकि, चुहड़ा, भंगी (3) बंगाली (4) बरड़, बुरड़, बेरड़ (5) बटबाल (6) बौरिया, बावेरिया (7) बाज़ीगर ( 8 ) भंजड़ा (9) चमार, जटिया चमार, रैहगर, रैगर, रामदासी, रविदासी (10) चनाल (11) दागी (12) दरैण (13) देहा, धाया, धेईआ (14) धानक ( 15 ) धोगड़ी, धानगड़ी, सिग्गी (16) डुमना, महाश, डोम (17) गगरा (18) गंधीला, गांदिल, गोनडोला (19) कबीरपंथी, जोलाहा (20) खटीक (21) कोरी, कोली (22) मारिजा, मारीचा (23) मज़हबी (24) मेघ (25) नट (26) ओड (27) पासी (28) पेरना (29) फिरेरा (30) सनहाए (31) सनहाल (32) सांसीं, भेडकुट, मनेश (33) सनसोई (34) सापेला (35) सारेड़ा (36) सिकलीगर (37) सिरकीबंद. उपरोक्त दर्ज जातियों में से किसी जाति का नकली प्रमाण-पत्र बनवा कर पंजाब में 50 से ज्यादा सवर्णों ने आरक्षित सरकारी नैकरियां प्राप्त की. ऐसे धोखेबाज़ों में से कुछेक तो अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर भी हो गए. इन धोखेबाज़ों की पड़ताल हो रही है. कह नहीं सकते कि उसका क्या नतीजा निकलेगा. मणिपुर शांति बहाली हो मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच खूनी – टकराव रुक नहीं रहा, हालांकि भारत के गृहमंत्री मणिपुर में तीन दिन के दौरे पर रह भी चुके हैं. मैतेई और कुकी समुदायों में विश्वास बहाली ज़रूरी उनका तर्क है कि कुकी समुदाय के खिलाफ अभियान चलाने वाले संगठन के लोग भी शांति समिति में शामिल किए गए हैं. वहीं कुकी समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि उनकी सहमति के बिना उन्हें शांति समिति में शामिल किया गया है. बरहाल, कुल मिलाकर मणिपुर का यह संघर्ष राष्ट्र के संघीय ढांचे की भावना के विपरीत दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा. केन्द्र सरकार की भी कोशिश होनी चाहिए कि राज्यपाल के नेतृत्व वाली समिति के 51 सदस्यों को लेकर सभी पक्षों की सहमति बने. वहीं कुकी समुदाय के लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार हस्तक्षेप करके वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करे. कुकी समुदाय के विरोध के मूल में एक आरोप यह भी है कि उनके खिलाफ अभियान चलाने वाले नागरिक समूह के सदस्यों को शांति समिति में शामिल किया गया है. दरअसल, मणिपुर में हुए हालिया संघर्ष के मूल में मैतेई समुदाय को एस.टी. का दर्जा दिया जाना बताया जाता है. इस निर्णय के विरोध स्वरूप उपजे विवाद के चलते ही राज्य हिंसा की चपेट में आ गया. दरअसल, करीब 53 फीसदी आबादी वाले मैतेई समुदाय के पास राज्य में महज 10 फीसदी ज़मीन है, जबकि 40 फीसदी आबादी वाले कुकी समुदाय के पास 90 फीसदी ज़मीन है. यह असंतुलन अकसर दोनों समुदायों में टकराव का कारण बनता रहा है. यह पहले से ही कयास लगाए जा रहे थे कि मैतेई समुदाय को एस.टी. का दर्जा दिए जाने के बाद राज्य में अशांति का माहौल बन सकता है. कालांतर ऐसा हुआ भी. सतही तौर पर राज्य में हिंसक वारदातें थमी नज़र आती हैं, लेकिन इस विवाद का पटाक्षेप जल्दी हो पाएगा, ऐसे आसार नज़र नहीं आते. आबादी और ज़मीन के असंतुलन का विवाद तुरत-फुरत थमता नज़र नहीं आता है, क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में इस अनुपात में बड़ा परिवर्तन संभव भी नहीं है. केन्द्रीय गृहमंत्री के हस्तक्षेप व सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाने के बावजूद सतही शांति तो नज़र आती है. सवाल है कि यह स्थिति कब तक कायम रह सकती है. वह भी जब मैतेई समुदाय आरक्षण को अपने जीवन के लिए ज़रूरी बता रहा है तो आदिवासी समुदाय इसे क्षेत्र में असंतुलन पैदा करने वाला बता रहा है. कुकी समुदाय इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताता है. ज़ाहिर है कि इस जटिल समस्या का समाधान दोनों पक्षों के बीच विश्वास बढ़ाकर ही किया जा सकता है. कोई तो बोले ! समाचार-पत्रों में प्रायः मन्दिरों में जमा – सोने, चांदी, आभूषणों और नकद धन के समाचार छपते रहते हैं. महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रशासन प्रसिद्ध तुलजा भवानी मन्दिर में चढ़ावे की गणना कर रहा है और उसने एक सप्ताह में 207 किलोग्राम सोना और सोने के आभूषण, 1,280 किलोग्राम चांदी और चांदी के आभूषण और 354 हीरे दर्ज किए हैं. देश की हालत क्या है? भारत पर कुल देनदारी 147 लाख करोड़ रुपये हुई. डालर के मुकाबले वर्ष 2022 में रुपया गिरा. विदेशी मुद्रा भंडार 1.32 अरब डालर घटकर 593.75 अरब डालर पर एक डालर की कीमत लगभग 82 रुपये रहती है. ( जनसत्ता, 17 जून, 2022 ) केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा बीते वित्त वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का 6.4 फीसद रहा. यह वित्त मंत्रालय के संशोधित अनुमान अनुरूप है. सरकारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली. लेखा महानियंत्रतक (सी.जी.ए.) ने केन्द्र सरकार के 2022-23 के राजस्व – व्यय का आंकड़ा जारी करते हुए कहा कि मूल्य के हिसाब से राजकोषीय घाटा 17,33,131 करोड़ रुपये (अस्थायी ) रहा है. यह बजट के संशोधित अनुमान से कुछ कम है. सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए बाज़ार से कर्ज़ लेती है. सी. जी. ए. ने कहा कि सरकार की प्राप्तियां 2022-23 में 24.56 लाख करोड़ रुपये रहीं. यह 2022-23 के लिए कुल प्राप्तियों के संशोधित अनुमान का 101 फीसद है. इसमें 20.97 लाख करोड़ रुपये का कर राजस्व, 2.86 लाख करोड़ रुपये कर गैर-कर राजस्व और 72,187 करोड़ रुपये की गैर – ऋण पूंजी प्राप्तियां हैं. गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों में कर्ज की वसूली और विभिन्न पूंजी प्राप्ति शामिल हैं. हम ने देश की माली हालत के कुछेक संकेत दिए हैं. क्या मन्दिरों व अन्य धर्म स्थानों पर जमा- धन दौलत जनता की कल्याण और देश के विकास में नहीं लगाया जा सकता? इस पर आवाज़ उठानी चाहिए. समान सिविल कानून संविधानद्ध सभा में ‘समान सिविल संहिता’ पर लंबी बहस हुई. बाबा साहब अंबेडकर “समान सिविल कानून बनाने और उसे लागू करने के हक में थे. किन्तु संविधान सभा के सदस्य उनके विचार से सहमत नहीं थे. ‘ इसलिए संविधान में