Former Editor of “Bheem Patrika”
– Dr. B. R. Ambedkar
जब कोई कहता है कि वह अनुसूचित जाति का है तो उससे नफ़रत शुरू हो जाती है, इन्हीं नफ़रत करने वालों की काली करतूत देखिए.
(1) आदि धर्मी (2) वाल्मीकि, चुहड़ा, भंगी (3) बंगाली (4) बरड़, बुरड़, बेरड़ (5) बटबाल (6) बौरिया, बावेरिया (7) बाज़ीगर ( 8 ) भंजड़ा (9) चमार, जटिया चमार, रैहगर, रैगर, रामदासी, रविदासी (10) चनाल (11) दागी (12) दरैण (13) देहा, धाया, धेईआ (14) धानक ( 15 ) धोगड़ी, धानगड़ी, सिग्गी (16) डुमना, महाश, डोम (17) गगरा (18) गंधीला, गांदिल, गोनडोला (19) कबीरपंथी, जोलाहा (20) खटीक (21) कोरी, कोली (22) मारिजा, मारीचा (23) मज़हबी (24) मेघ (25) नट (26) ओड (27) पासी (28) पेरना (29) फिरेरा (30) सनहाए (31) सनहाल (32) सांसीं, भेडकुट, मनेश (33) सनसोई (34) सापेला (35) सारेड़ा (36) सिकलीगर (37) सिरकीबंद.
उपरोक्त दर्ज जातियों में से किसी जाति का नकली प्रमाण-पत्र बनवा कर पंजाब में 50 से ज्यादा सवर्णों ने आरक्षित सरकारी नैकरियां प्राप्त की. ऐसे धोखेबाज़ों में से कुछेक तो अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर भी हो गए.
इन धोखेबाज़ों की पड़ताल हो रही है. कह नहीं सकते कि उसका क्या नतीजा निकलेगा.
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच खूनी – टकराव रुक नहीं रहा, हालांकि भारत के गृहमंत्री मणिपुर में तीन दिन के दौरे पर रह भी चुके हैं.
उनका तर्क है कि कुकी समुदाय के खिलाफ अभियान चलाने वाले संगठन के लोग भी शांति समिति में शामिल किए गए हैं. वहीं कुकी समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि उनकी सहमति के बिना उन्हें शांति समिति में शामिल किया गया है. बरहाल, कुल मिलाकर मणिपुर का यह संघर्ष राष्ट्र के संघीय ढांचे की भावना के विपरीत दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा. केन्द्र सरकार की भी कोशिश होनी चाहिए कि राज्यपाल के नेतृत्व वाली समिति के 51 सदस्यों को लेकर सभी पक्षों की सहमति बने. वहीं कुकी समुदाय के लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार हस्तक्षेप करके वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करे. कुकी समुदाय के विरोध के मूल में एक आरोप यह भी है कि उनके खिलाफ अभियान चलाने वाले नागरिक समूह के सदस्यों को शांति समिति में शामिल किया गया है.
दरअसल, मणिपुर में हुए हालिया संघर्ष के मूल में मैतेई समुदाय को एस.टी. का दर्जा दिया जाना बताया जाता है. इस निर्णय के विरोध स्वरूप उपजे विवाद के चलते ही राज्य हिंसा की चपेट में आ गया. दरअसल, करीब 53 फीसदी आबादी वाले मैतेई समुदाय के पास राज्य में महज 10 फीसदी ज़मीन है, जबकि 40 फीसदी आबादी वाले कुकी समुदाय के पास 90 फीसदी ज़मीन है. यह असंतुलन अकसर दोनों समुदायों में टकराव का कारण बनता रहा है. यह पहले से ही कयास लगाए जा रहे थे कि मैतेई समुदाय को एस.टी. का दर्जा दिए जाने के बाद राज्य में अशांति का माहौल बन सकता है. कालांतर ऐसा हुआ भी. सतही तौर पर राज्य में हिंसक वारदातें थमी नज़र आती हैं, लेकिन इस विवाद का पटाक्षेप जल्दी हो पाएगा, ऐसे आसार नज़र नहीं आते. आबादी और ज़मीन के असंतुलन का विवाद तुरत-फुरत थमता नज़र नहीं आता है, क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में इस अनुपात में बड़ा परिवर्तन संभव भी नहीं है. केन्द्रीय गृहमंत्री के हस्तक्षेप व सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाने के बावजूद सतही शांति तो नज़र आती है. सवाल है कि यह स्थिति कब तक कायम रह सकती है. वह भी जब मैतेई समुदाय आरक्षण को अपने जीवन के लिए ज़रूरी बता रहा है तो आदिवासी समुदाय इसे क्षेत्र में असंतुलन पैदा करने वाला बता रहा है. कुकी समुदाय इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताता है. ज़ाहिर है कि इस जटिल समस्या का समाधान दोनों पक्षों के बीच विश्वास बढ़ाकर ही किया जा सकता है.
समाचार-पत्रों में प्रायः मन्दिरों में जमा – सोने, चांदी, आभूषणों और नकद धन के समाचार छपते रहते हैं.
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रशासन प्रसिद्ध तुलजा भवानी मन्दिर में चढ़ावे की गणना कर रहा है और उसने एक सप्ताह में 207 किलोग्राम सोना और सोने के आभूषण, 1,280 किलोग्राम चांदी और चांदी के आभूषण और 354 हीरे दर्ज किए हैं.
सरकारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली. लेखा महानियंत्रतक (सी.जी.ए.) ने केन्द्र सरकार के 2022-23 के राजस्व – व्यय का आंकड़ा जारी करते हुए कहा कि मूल्य के हिसाब से राजकोषीय घाटा 17,33,131 करोड़ रुपये (अस्थायी ) रहा है. यह बजट के संशोधित अनुमान से कुछ कम है.
सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए बाज़ार से कर्ज़ लेती है. सी. जी. ए. ने कहा कि सरकार की प्राप्तियां 2022-23 में 24.56 लाख करोड़ रुपये रहीं. यह 2022-23 के लिए कुल प्राप्तियों के संशोधित अनुमान का 101 फीसद है. इसमें 20.97 लाख करोड़ रुपये का कर राजस्व, 2.86 लाख करोड़ रुपये कर गैर-कर राजस्व और 72,187 करोड़ रुपये की गैर – ऋण पूंजी प्राप्तियां हैं. गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों में कर्ज की वसूली और विभिन्न पूंजी प्राप्ति शामिल हैं.
हम ने देश की माली हालत के कुछेक संकेत दिए हैं. क्या मन्दिरों व अन्य धर्म स्थानों पर जमा- धन दौलत जनता की कल्याण और देश के विकास में नहीं लगाया जा सकता? इस पर आवाज़ उठानी चाहिए.
संविधानद्ध सभा में ‘समान सिविल संहिता’ पर लंबी बहस हुई. बाबा साहब अंबेडकर “समान सिविल कानून बनाने और उसे लागू करने के हक में थे. किन्तु संविधान सभा के सदस्य उनके विचार से सहमत नहीं थे. ‘
इसलिए संविधान में निम्नलिखित अनुच्छेद दर्ज किया गया :
“अनुच्छेद 44 : राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता” प्राप्त करने का प्रयास करेगा.
भारत के निधि आयोग ने 30 जून, 2023 तक लोगों से राय मांगी है कि कानून बनाया जाए या नहीं. हिन्दू राष्ट्रवादी समान सिविल कानून बनने के लिए वर्षों से मांग कर रहे हैं. अब यह मामला विधि आयोग के हवाले कर दिया गया है.
पहला: रेप केस में 23 मई, 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अजीब आदेश दिया. लखनऊ यूनिवर्सिटी के ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष से कहा : वे पीड़िता की कुंडली देखें और बताएं कि वो मांगलिक है या नहीं, इसके बाद ही आरोपी की ज़मानत पर फैसला होगा.
मामला चर्चा में आते ही सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया. शनिवार को छुट्टी के दिन स्पैशल बेंच बैठी, जिसने आदेश पर रोक लगा दी. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पंकज मित्थल ने कहा कि आपराधिक केस का ज्योतिष से कोई लेना- देना नहीं. हमें समझ नहीं आता ज्योतिष के पहलू पर विचार को क्यों कहा गया.
आरोपी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर है. उसने हाईकोर्ट में ज़मानत अर्जी लगाई है. पीड़िता ने हाईकोर्ट को बताया कि आरोपी ने शारीरिक संबंध बनाए, पर शादी नहीं की. आरोपी ने तर्क दिया कि लड़की मांगलिक है, इसलिए शादी नहीं कर सकता.
दूसरा: भाजपा नेता की पुत्री का दूसरे धर्म के युवक के साथ तय विवाह का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया.
हम देश में सभी नागरिकों के लिए समान सिविल (दीवानी ) कानून बनाने और लागू करने के हक में है. इसे बनाना – न बनाना हिन्दू राष्ट्रवादियों की मर्जी पर नहीं छोड़ना चाहिए.
> एल. आर. बाली
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