“Equality may be a fiction but nonetheless one must accept it as a governing principle.” – Dr. B. R. Ambedkar अंबेडकरवादी विचारधारा के ध्वजवाहक : श्री एल. आर. बाली साहब ( 20 जुलाई 1930 — 06 जुलाई 2023 ) लेखक – रंजीत कुमार गौतम B.A. , M.A. (Political science and International) गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय एल. आर. बाली उस महान व्यक्तित्व का नाम है जिसने अपनी प्रज्वलित मसाल से न जाने कितने अंधेरी घरों में रोशनी पैदा किया और इस मानव जगत को सकारात्मक और प्रगतिशील दिशा प्रदान किया। बाली साहब प्रायः अपने ओजस्वी भाषणों से समस्त नौजवानों में उत्साह उत्पन्न किया करते थे और उनकी लेखनी सदैव तर्कशीलता , विद्वता , दार्शनिकता और यथार्थवादिता से परिपूर्ण हुआ करती थी जो मनुष्य को सही और सकारात्मक दिशा प्रशस्त करने में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करती हैं। परंतु बाली साहब जैसे महान व्यक्तित्व का नाम किसी विशेष क्षेत्र तक ही सीमित नहीं किया जा सकता । उनका योगदान विभिन्न क्षेत्रों में बड़ा ही उत्कृष्ट रहा है। महान लेखक व पत्रकार , महान समाज सुधारक , महान क्रांतिकारी योद्धा , महान दार्शनिक व विचारक , महान समाज सेवक इत्यादि जैसे विभिन्न रूपों में उन्होंने अपने जीवन के अंतिम सांस तक में विशेष योगदान दिया जो की ऐतिहासिक पृष्ठों पर सदैव स्वर्णिम अक्षरों में विद्यमान और वर्णित रहेगा। अतः उपरोक्त विभिन्न रूपों में बाली साहब ने अपना योगदान कैसे दिया ? मैं संक्षिप्त रूप से वर्णन करना चाहूंगा। महान लेखक व पत्रकार :— 14 अप्रैल सन् 1958 को बाली साहब ने भी पत्रिका की स्थापना किया और तब से अपने जीवन की अंतिम क्षणों तक वे स्वयं इस पत्रिका के संपादक रहे। अपनी पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने देश की सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक व धार्मिक परिस्थितियों को समस्त जनमानस तक पहुंचाने का कार्य किया। भीम पत्रिका के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों व महिलाओं पर हो रहे जुल्म व अत्याचारों संबंधित गंभीर मुद्दों को बाली साहब बड़े ही प्रबलता से उठाते रहे और इन वर्गों के लिए प्रायः उचित न्याय की मांग करते रहे। यद्यपि हिंदी , उर्दू , अंग्रेजी और पंजाबी भाषा में बाली साहब सैकड़ों किताबें के सुप्रसिद्ध और महान लेखक थे जिनमें से – डॉ. अंबेडकर जीवन और मिशन , डॉ अंबेडकर ने क्या किया , डॉ. अंबेडकर और भारतीय संविधान , डॉ आंबेडकर महान समाज सुधारक , अंबेडकरी होने का अर्थ – आत्मकथा , अंबेडकर मिशन अर्थात अंबेडकरइज्म , डॉ आंबेडकर बनाम कार्ल मार्क्स , भारत में सांस्कृतिक क्रांति की जरूरत , बच्चों के अंबेडकर , डॉ. अंबेडकर : लंदन में ललकार और पूना पैक्ट , संविधान बनाम मनुस्मृति , अंबेडकर अपनाओ देश बचाओ , डॉ आंबेडकर कलम का कमाल (दोनों भाग ) इत्त्यादि उनके द्वारा लिखी गई महत्वपूर्ण किताबें के प्रमुख उदाहरण के रूप विद्यमान हैं । बाली साहब के लेखन शैली में इतनी ताकत हुआ करती थी कि जिसे पढ़कर कोई भी बड़े से बड़े धुरंधर सोंचने पर विवश हो जाए। बाबा साहेब अंबेडकर के विचारधारा से संबंधित महत्वपूर्ण किताबें को लिखकर बाली साहब ने अंबेडकरवादी प्रकाश को उन्होंने समस्त जगत में फैलने का कार्य किया। महान समाज सुधारक :— विविध प्रतिभा संपन्न बाली साहब एक महान समाज सुधारक थे । उन्होंने प्रायः अंधविश्वास व जाति प्रथा और सांप्रदायिक सोच पर कड़ा प्रहार किया । वे अपने ओजस्वी वक्तव्यों व भाषणों के माध्यम से विपरीत परिस्थितियों से लड़ने हेतु समाज के कमजोर वर्गों में एक ताकत, जोश अथवा उत्साह वर्धन किया करते थे। उन्होंने उन सभी रूढ़िवादी , धार्मिक , परंपराओं को खंडन किया जो समता , स्वतंत्रता और बंधुत्व के धुर विरोधी हैं। अंबेडकरवादी सोंच के आधार पर समाज का नवनिर्माण करने हेतु उन्होंने प्रायः लोगों को प्रोत्साहित करने का कार्य किया। बाली साहब अपने जीवन के अंतिम छोर तक समाज के कमजोर वर्गों को एक तर्कशील , स्वाभिमानी और स्वावलंबी समाज बनाने हेतु प्रयासरत रहे। महान समाज सेवक :— बाली साहब ने आजीवन दलितों , पिछड़ों , आदिवासियों और महिलाओं के लिए एक बुलंद आवाज के रूप में काम किया। उन्होंने अपना समस्त जीवन जनकल्याण और मानव सेवा में समर्पित किया। उन्होंने स्वयं ही कइयों विभिन्न आंदोलन और मोर्चाओं का नेतृत्व किया। उनके संघर्ष व प्रयास से अनगिनत लोगों को न्याय मिला। उन्होंने सन् 1958—59 में खुराक आंदोलन का नेतृत्व किया जिसके परिणामस्वरुप खाद्य पदार्थों पर सरकार द्वारा बढ़ाए गए टैक्स और दामों को काम करवाया। सन 1964 की देशव्यापी मोर्चा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और देश के प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री से मुलाकात कर , देश की सभी निकासी जमीनों और बैंकों को राष्ट्रीयकरण करने हेतु प्रस्ताव को पारित करवाया। जिसके फलस्वरुप पंजाब के साथ-साथ देश के विभिन्न भागों में सभी मजदूरों , गरीबों , दलितों , पिछड़ों और भूमिहीनों को जमीन प्राप्त हुई । बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ और बाबा साहेब अंबेडकर की प्रतिमा भारतीय संसद के परिसर में लगाई गई। ऑल इंडिया समता सैनिक दल के तत्वाधान में हैदराबाद के आदिलाबाद में 500 एकड़ जमीनों पर कब्जा कर वहां पर दलितों और आदिवासियों के लिए लुंबिनी नगर बसाने का कार्य किया। सन् 1989 में गांव – औरंगाबाद ( कालोनी ), जिला – शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) में ग्राम प्रधान व कुछ दबंगों के द्वारा नई नई बस रही बस्ती (कालोनी) को उजाड़ने और वहां से गरीबों को भगाने का खूब प्रयास किया गया , समय समय पर कॉलोनी के गरीब लोगों को परेशान किया जाता रहा। श्रद्धेय बाली साहब ने उक्त प्रकरण को लेकर ग्रामवासियों की मदद करने हेतु शाहजहांपुर के जिला प्रशासन को चिट्ठी लिख कर निर्दिष्ट किया और स्वयं बाली साहब गांव के दौरे पर आए । बाली साहब ने एक विशाल आयोजित जनसभा को संबोधित किया। आदरणीय बाली साहब ने गांव को न्यायिक और प्रशासनिक सुरक्षा प्रदान करवाया और दबंगों द्वारा कालोनी वासियों के 53 पट्टों की जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा किए गए , जमीनों को वापस दिलाने का कार्य किया। अतः समाज की उत्थान और कल्याण से संबंधित अनेकों उदाहरण है बाली साहब के , यदि लिखा जाए तक बहुत बड़ा ग्रंथ तैयार हो सकता है। महान क्रांतिकारी योद्धा :— मानव रत्न बाली साहब स्वयं में ही एक बहुत बड़ा इंकलाब थे। वह एक ऐसे क्रांतिकारी योद्धा थे जिन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों
Remembering L R Balley Ji – Ranjana Vase
स्मृतिशेष “मैं एक समुदाय की प्रगति को उस प्रगति की डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है.” – डॉ. बी.आर.अम्बेडकर आंबेडकर मिशन के ध्वजवाहक – स्मृतीशेष एल.आर.बाली समता सैनिक, रंजना वासे, नागपुर (महाराष्ट्र) डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर विचार धारा को जिन्होने तन मन धन से अपना जीवन अर्पित करने वाले स्मृतीशेष एल. आर. बाली साहब जो भारत के प्रसिध्द लेखक, विचारवंत, विद्वत्ता पूर्ण प्रभावी वक्ता, लढय्ये, आंबेडकरी “भीमपत्रिका” के संपादक आदरणीय एल. आर. बाली साहब महत्वपुर्ण व्यक्तित्व है। दिल्ली मे रहते हुये डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महान व्यक्तित्व को भली भांती जानने, उनकी काम करने की विधी को समझने, उनकी विचारधारा से ज्ञानवान होने और उनके आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने का बालीजी को भरपूर अवसर मिला। बालीजी कहते है, “मेरे अन्दर यदि कोई गुण है तो वह डॉ. आंबेडकर की शिक्षाओं के कारण है”। जैसा की डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय समाज का आदर्श समाज में रूपांतरण करना चाहते थे। डॉ. आंबेडकर जी से बाली साहब ने जो भी गुण हासील किये, उसका उपयोग उन्होने अपने स्वार्थ के लिए न करते हुए संपुर्ण भारतीय के भलाई के लिए किया । अंतिम बार जब बालीजी 30 सितंम्बर 1956 को डॉ. आंबेडकर से मिले तो बाबासाहब बहुत बिमार थे। उनके निवास स्थान, दिल्ली की अलीपूर रोड के बंगला नंबर 26 पर वो घंटो बैठ रहे । वहा उन्होंने फैसला कर लिया कि, उस ज्योति को जो डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने रोशन कि है, उसे अपने जीवन की अंतिम सांस तक प्रज्वलीत करेंगे । अपने दृढसंकल्प को पुरा करने के लिए जिस दिन अर्थात 6 दिसंबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का महापरिनिर्वाण हुआ, उसी दिन उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दिया । आदरनिय एल. आर. बाली जी व्दारा 1958 में जालंधर पंजाब से “भीमपत्रिका” का सफर शुरू हुआ जो आज भी निरंतर जारी है। आज भीमपत्रिका हिंन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी में प्रकाशित होती है। आंबेडकरी आंदोलन में और भारतीय समाज मे वैज्ञानिक दृष्टीकोन उत्पन्न करने में भीमपत्रिका का योगदान महत्वपुर्ण रहा है । भीमपत्रिका के माध्यम से बालीजी ने अनेक सरकारी और गैर सरकारी निरर्थक योजनाओ का खुलासा किया है। भीम पत्रिका के पाठक भारत में ही नही बल्की विदेशो में भी है । भीमपत्रिका के अंक इंटरनेट पर भी उपलब्ध कराए जाते है। आज भीमपत्रिका ऑल इंडिया समता सैनिक दल का मुख पत्र बन चुका है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने आंदोलन के प्रारंभिक दौर में 13 मार्च 1927 (रविवार) को महाड आंदोलन के एक सप्ताह पुर्व सेना के सेवानिवृत्त सुबेदार सवादकर को साथ लेकर मुबंई में समता सैनिक दल का गठन किया था। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण तक ऑल इंडिया समता सैनिक दल की गतिविधीया अपनी चरन पर थी। किंतु बाबासाहब के महापरिनिर्वाण के बाद अम्बेडकरवादी नेताओ की फुटीरतावादी निति के कारन समता सैनिक दल का भी विघटन हुआ। दलित समाज पर बढ़ते अन्याय अत्याचार को देखकर अपने फौलादी संघटन समता सैनिक दल का पुनर्गठन करने का कुछ साथियो ने निर्णय किया। आल इंडिया समता सैनिक दल को पुनर्गठन करने में आदरणीय बाली जी का अहम् योगदान रहा। आदरणीय एल. आर. बाली साहब के नेतृत्व में बाबासाहब जी द्वारा लिखित अप्रकाशित साहित्य जो उनके पारिवारिक झगड़ो के कारण मुंबई स्थित धर्मदाय आयुक्त के कार्यालय में खुले में एक पेटी में दो दशको तक बंद पड़ा हुआ था। आल इंडिया सैनिक समता दल के माधयम से मुंबई में अप्रकाशित गरंथ के लिए बाली जी के नेतृत्व में यह संविधानिक लड़ाई लड़ी गय। जिसमे वरिष्ठ सैनिक आदरणीय हरीश चंहादे जी, धरमदास चंदनखेड़े, एड भगवानदास, भालचंद लोखंडे, सुरेंदर अज्ञात, मनोहर नागराळे इनका अहम् योगदान रहा। तभी महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित 22 खंड हमारे घर-घर तक पहुंचे है। समता सैनिक दल को मजबुत करना बाली जी प्राथिमकता थी। अपनी उम्र के उस पड़ाव में भी वह दल के जवान सैनिक थे। बाबासाहब आंबेडकर चाहते थे कि, अस्पृश्य समाज के हर घर का एक युवा दल में शामिल नहीं होता तब तक समता सैनिक दल का विस्तार जारी रहना चाहिए। बालीजी बाबासाहब आंबेडकर जी के इसी सपने को पूरा करने में दिन रात लगे रहते थे। जब तक बालीजी के उस कार्य को पूरा करने के लिए आंबेडकरवादी समाज एक नहीं हो कटा तब तक संभव नहीं है। आंबेडकरवादी जब तक एकजुट नहीं होता तब तक हम बाली साहब को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दे सकते। अंत में निर्भिड योद्धा स्मृतिशेष एल. आर. बाली साहब को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देती हूँ। और सैदव उनके कार्य को आगे बढ़ाने कि कोशिश में तत्पर रहने का प्रण करती हूँ।
Dr. Surender Agyat
“Men are mortal. So are ideas. An idea needs propagation as much as a plant needs watering. Otherwise both will wither and die.” – Dr. B. R. Ambedkar एल. आर. बाली : अविस्मरणीय स्मृतियां डॉ. सुरेन्द्र अज्ञात श्री एल. आर. बाली, पर लिखने बैठा हूं, पर मेरी स्थिति कवि के शब्दों में यह है : ” क्या भूलूं क्या याद करूं मैं ?” जिस व्यक्ति से आधी सदी से भी ज्यादा समय का घनिष्ठ संबंध रहा हो, उससे संबंधित यादों को लिखते समय ऐसा होना स्वाभाविक ही है. बाली साहब कुशल और ओजस्वी वक्ता थे. वस्तुतः मैं उनका 1967 में बंगा में दिया एक भाषण सुन कर ही सर्वतः प्रथम उनके प्रति आकृष्ट हुआ था. भाषण था तो राजनीतिक पर उसमें बुद्धिवाद का भी बहुत बड़ा अंश था. उस भाषण में रणजीत सिंह के राज्य में दलितों की अवस्था की बाबत की गई उनकी टिप्पणी इतनी ऐतिहासिक और हृदय स्पर्शी थी कि उसके 20-25 वर्ष बाद ‘नवां ज़माना’ के संपादकीय में जगजीत सिंह आनन्द ने उसे बाली साहब के बंगा में दिए भाषण के हवाले से उद्धृत किया था. वह संपादकीय मैंने बाली साहब को डाक द्वारा भेजा भी था, जो उनके कागज़ों- पत्रों में कहीं विद्यमान होगा. बाली साहब के भाषण को सुनकर मुझसे पहले भी एक अन्य गैर – दलित उन पर फिदा हुआ था – वह थे नवांशहर के महाशय कृष्ण कुमार बोधी. वह आर्यसमाजी थे परन्तु 1956 में जब उन्होंने बाली साहब का भाषण सुना तो वह सदा के लिए बौद्ध एवं अंबेडकरी बन गए – नवांशहर का अंबेडकर – भवन उन्हीं के प्रयत्नों के फलस्वरूप अस्तित्व में आया था. जब गैर-दलित तक उनके स्पष्ट, बुद्धिवादी और ओजस्वी भाषणों से इस तरह प्रभावित हो जाते थे तो दलितों पर उनके भाषणों के प्रभाव का तो कहना ही क्या है ? 1967 का बाली साहब का प्रभाव तब और ज्यादा बढ़ गया जब 1970-71 में मैंने उनकी ‘डॉ. अंबेडकर : जीवन और मिशन’ (पंजाबी में) पुस्तक पढ़ी. इसे पढ़ने के कुछ समय बाद मैं बीमार पढ़ गया – शायद टाइफायड था. बुखार के दौरान उक्त पुस्तक के दृश्य, उसमें अंकित बातें, मेरे दिमाग में घूमती रहतीं. वह जितने प्रबल वक्ता थे, उतने ही कलम के धनी भी थे. 1973-74 वह वर्ष था जब मैं उनसे पहली बार मिला और यह मिलन निरन्तर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक चला. उनसे मेरी अंतिम बातचीत एक जुलाई के आसपास फोन पर हुई थी और जिस विषय पर चर्चा हुई थी, उस पर आगे और विचार 9 जुलाई को करना था, परन्तु 6 जुलाई को अचानक वह हम से सदा के लिए बिछुड़ गए ! 1973-74 में मैं गढ़शंकर ( जिला होशियारपुर ) स्थित खालसा कॉलेज में पढ़ाता था. छात्रों के एक दल ने प्रिंसीपल से कहा कि हमें डॉ. अंबेडकर का जन्म दिन मनाना है. प्रिंसीपल ने उन्हें मेरे पास भेज दिया क्योंकि मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का इन्चार्ज था. बात हुई मुख्य वक्ता को बुलाने की. बाली साहब का नाम सभी को स्वीकार था. कार्यक्रम हुआ. बाद में मुख्य अतिथि के साथ स्टाफ का चाय-पान था. इस दौरान मैंने बाली साहब से बातचीत की. उन्हें बताया कि मेरे लेख ‘सरिता’ पत्रिका में छपते हैं और पिछले दिनों ‘गायत्री मंत्र’ पर लिखा लेख चर्चा में काफी रहा है. वह बोले ‘क्या वह आपका लेख है ? मैंने काट कर फाइल में लगाया हुआ है. आप किसी दिन जालन्धर आएं बैठकर और चर्चा करेंगे. ” कुछ दिनों बाद मैं उनके दफ्तर पहुंचा, जो तब ज्योति सिनेमा के पास हुआ करता था. यह थी शुरूआत. बाली साहब निष्ठावान् बौद्ध थे, बल्कि कहना चाहिए कि बौद्धों के नेता थे. मैंने जब अंबेडकर साहित्य पढ़ना शुरू किया, तब बुद्धइज़्म का ज़िक्र आया करता था. एक दिन बाली साहब के घर बैठक में बैठे थे कि बातचीत के दौरान मैंने कहा कि बुद्धइज़्म में ‘यह’ है, उसमें ‘वह’ है. मुझे तो यह सब तर्कहीन एवं अंधविश्वासपूर्ण लगता है, जिसे मैं स्वीकार नहीं कर सकता, तो वह बोले कि हम भी यह सब स्वीकार नहीं करते. हम तो बुद्धइज़्म का वह रूप स्वीकार करते हैं जो बाबा साहब ने अपनी पुस्तक ‘The Buddha and His Dhamma ‘ में प्रस्तुत किया है. यह कहकर उन्होंने पास ही खड़े अपने एक कर्मचारी से कहा जाओ और हज़ारा राम बोधी के घर से इस पुस्तक की एक कापी ले आओ – पुस्तक का नाम उन्होंने कागज़ पर लिख कर उसे थमा दिया. वह पुस्तक मैंने जल्दी-जल्दी पढ़ डाली और बुद्धइज़्म पर आज तक जो लिखा है, उसी के प्रकाश में लिखा है. इसी दौरान मई 1977 में मेरी व सोमा सबलोक की शादी का अवसर पैदा हो गया. बाली साहब से बात की. बोले – ” बौद्ध रीति से शादी संभव है.” मैंने कहा कि “मैं बुद्धइज़्म को तो स्वीकार करता हूं. परन्तु भिक्षुवाद को नहीं.” वह बोले – “भिक्षुवाद को तो बाबा साहब स्वयं नापसंद करते थे. उनका कहना है कि निष्ठावान् एवं चरित्रवान् गृहस्थ व्यक्ति को विवाह आदि संपन्न कराने चाहिए, जहां तक कि वह व्यक्ति दीक्षा देने का भी अधिकारी है. बाबा साहब ने अपने 10 लाख अनुयायियों को 1956 में स्वयं ही नागपुर में दीक्षा दी थी, किसी भिक्षु ने नहीं दिलाई थी. ” बाली साहब आगे कहने लगे – ” मैं स्वयं शादी संपन्न करूंगा. हम कुछ प्रतिज्ञाएं पति-पत्नी से करवाते हैं, जो कागज़ पर लिखी रहती हैं और उन पर पति-पत्नी एवं साक्षी के हस्ताक्षर करवाते हैं. इसमें भिक्षु की कोई भूमिका नहीं होती और न ही उसे हम बुलाते हैं. ” यह निश्चित होने पर 29 मई को बाली साहब आए और बहुत बड़े जनसमुदाय के समक्ष हमारी शादी संपन्न कराई. जहां तक मुझे याद है, उनके दोनों बेटों की शादियां भी इसी तरह संपन्न हुई थीं, क्योंकि मैं दोनों शादियों में सपत्नीक उपस्थित था. मतलब यह कि बाली साहब जो कहते थे, वही करते थे. वे हाथी के खाने के और दिखाने के अलग-अलग दांतों में विश्वास नहीं करते थे. खेद है, अब प्राय: सर्वत्र इसके विपरीत ही हो रहा है. नेता में मौके की नज़ाकत को समझते हुए तत्काल निर्णय लेने की क्षमता होती