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स्मृतिशेष

“मैं एक समुदाय की प्रगति को उस प्रगति की डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है.” – डॉ. बी.आर.अम्बेडकर

आंबेडकर मिशन के ध्वजवाहक - स्मृतीशेष एल.आर.बाली

समता सैनिक, रंजना वासे, नागपुर (महाराष्ट्र)   

          डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर विचार धारा को जिन्होने तन मन धन से अपना जीवन अर्पित करने वाले स्मृतीशेष एल. आर. बाली साहब जो भारत के प्रसिध्द लेखक, विचारवंत, विद्वत्ता पूर्ण प्रभावी वक्ता, लढय्ये, आंबेडकरी “भीमपत्रिका” के संपादक आदरणीय एल. आर. बाली साहब महत्वपुर्ण व्यक्तित्व है। 

          दिल्ली मे रहते हुये डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महान व्यक्तित्व को भली भांती जानने, उनकी काम करने की विधी को समझने, उनकी विचारधारा से ज्ञानवान होने और उनके आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने का बालीजी को भरपूर अवसर मिला। बालीजी कहते है, “मेरे अन्दर यदि कोई गुण है तो वह डॉ. आंबेडकर की शिक्षाओं के कारण है”। जैसा की डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय समाज का आदर्श समाज में रूपांतरण करना चाहते थे। डॉ. आंबेडकर जी से बाली साहब ने जो भी गुण हासील किये, उसका उपयोग उन्होने अपने स्वार्थ के लिए न करते हुए संपुर्ण भारतीय के भलाई के लिए किया । 

          अंतिम बार जब बालीजी 30 सितंम्बर 1956 को डॉ. आंबेडकर से मिले तो बाबासाहब बहुत बिमार थे। उनके निवास स्थान, दिल्ली की अलीपूर रोड के बंगला नंबर 26 पर वो घंटो बैठ रहे । वहा उन्होंने फैसला कर लिया कि, उस ज्योति को जो डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने रोशन कि है, उसे अपने जीवन की अंतिम सांस तक प्रज्वलीत करेंगे । अपने दृढसंकल्प को पुरा करने के लिए जिस दिन अर्थात 6 दिसंबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का महापरिनिर्वाण हुआ, उसी दिन उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दिया । 

          आदरनिय एल. आर. बाली जी व्दारा 1958 में जालंधर पंजाब से “भीमपत्रिका” का सफर शुरू हुआ जो आज भी निरंतर जारी है। आज भीमपत्रिका हिंन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी में प्रकाशित होती है। आंबेडकरी आंदोलन में और भारतीय समाज मे वैज्ञानिक दृष्टीकोन उत्पन्न करने में भीमपत्रिका का योगदान महत्वपुर्ण रहा है । भीमपत्रिका के माध्यम से बालीजी ने अनेक सरकारी और गैर सरकारी निरर्थक योजनाओ का खुलासा किया है। भीम पत्रिका के पाठक भारत में ही नही बल्की विदेशो में भी है । भीमपत्रिका के अंक इंटरनेट पर भी उपलब्ध कराए जाते है। आज भीमपत्रिका ऑल इंडिया समता सैनिक दल का मुख पत्र बन चुका है। 

          डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने आंदोलन के प्रारंभिक दौर में 13 मार्च 1927 (रविवार) को महाड आंदोलन के एक सप्ताह पुर्व सेना के सेवानिवृत्त सुबेदार सवादकर को साथ लेकर मुबंई में समता सैनिक दल का गठन किया था। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण तक ऑल इंडिया समता सैनिक दल की गतिविधीया अपनी चरन पर थी। किंतु बाबासाहब के महापरिनिर्वाण के बाद अम्बेडकरवादी नेताओ की फुटीरतावादी निति के कारन समता सैनिक दल का भी विघटन हुआ।  दलित समाज पर बढ़ते अन्याय अत्याचार को देखकर अपने फौलादी संघटन समता सैनिक दल का पुनर्गठन करने का कुछ साथियो ने निर्णय किया।  आल इंडिया समता सैनिक दल को पुनर्गठन करने में आदरणीय बाली जी का अहम् योगदान रहा।

          आदरणीय एल. आर. बाली साहब के नेतृत्व में बाबासाहब जी द्वारा लिखित अप्रकाशित साहित्य जो उनके पारिवारिक झगड़ो के कारण मुंबई स्थित धर्मदाय आयुक्त के कार्यालय में खुले में एक पेटी में दो दशको  तक बंद पड़ा हुआ था। आल इंडिया सैनिक समता दल के माधयम से मुंबई में अप्रकाशित गरंथ के लिए बाली जी के नेतृत्व में यह संविधानिक  लड़ाई लड़ी गय। जिसमे वरिष्ठ सैनिक आदरणीय हरीश चंहादे जी, धरमदास चंदनखेड़े, एड भगवानदास, भालचंद लोखंडे, सुरेंदर अज्ञात, मनोहर नागराळे इनका अहम् योगदान रहा।  तभी महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित 22 खंड हमारे घर-घर तक पहुंचे है।

          समता सैनिक दल को मजबुत करना बाली जी प्राथिमकता थी।  अपनी उम्र के उस पड़ाव में भी वह दल के जवान सैनिक थे।  बाबासाहब आंबेडकर चाहते थे कि, अस्पृश्य समाज के हर घर का एक युवा दल में शामिल नहीं होता तब तक समता सैनिक दल का विस्तार जारी रहना चाहिए।  बालीजी बाबासाहब आंबेडकर जी के इसी सपने को पूरा करने में दिन रात लगे रहते थे।  जब तक बालीजी के उस कार्य को पूरा करने के लिए आंबेडकरवादी समाज एक नहीं हो कटा तब तक संभव नहीं है।  आंबेडकरवादी जब तक एकजुट नहीं होता तब तक हम बाली साहब को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दे सकते। 

          अंत में निर्भिड योद्धा स्मृतिशेष एल. आर. बाली साहब को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देती हूँ।  और सैदव उनके कार्य को आगे बढ़ाने कि कोशिश में तत्पर रहने का प्रण करती हूँ।