Edition – October, 2023
स्थापना-10 में 2022 को भदन्त आर्य नागार्जुन सुरई ससाई अध्यक्ष, प.पु. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक समिती, दिक्षाभूमी नागपुर और सचिव, सुधीर फुलझेले, दिक्षाभुमी के अन्य सदस्य इनके व्दारा स्थापना की गई। 11 में 2022 को भदन्त धम्मसारथी इनको बुध्दीस्ट सेमिनरी का कार्यभार सौपा गया, मुख्य धम्म प्रशिक्षक के रूप मे भिक्खु, श्रामणेर, उपासक, उपासीका को धम्म प्रशिक्षण का कार्य शुरू हुवा।
संकल्पना :- डॉ. भिमराव बाबासाहाब आंबेडकर जी ने 4 दिंसंबर 1954 को रंगून (बर्मा) मे आयोजित आंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन में जो भाषण दिया था उसमे जो प्रमुख मुद्दे उभर कर सामने आये उनमे से कुछ बातो को केंद्रबिन्दु मानकर संकल्प किया गया,भारत में बुद्ध धम्म का प्रचार प्रसार सूचारू रूप से होने के लिये निम्न कुछ बाते करना जरूरी थी ।
एक तो बुद्ध धम्म के केंद्र की स्थापना करना जहाँ से उपदेशक बनने के इच्छुक व्यक्तीयों को बुद्ध धम्म तथा अन्य धर्मो के तूलनात्मक अध्ययन की कि शिक्षा दी जा सकें, कई सारे साधारण उपासकों की नियुक्ती करना जो कि लोगों के बीच जाकर बाबासाहेब को अपेक्षित धम्म का उपदेश दे सके, और यह भी देंखे की लोग सही अर्थ में धम्म का कितना पालन कर रहे है या कर हि नही रहें । हर एक रविवार को बुद्ध विहार में सामुहीक वंदना का प्रावधान करना उसके बाद उपदेशो का एक सत्र आयोजित करना समय की माँग है। इन सारी बातो को समझकर भदन्त अरिय नागार्जुन सुरई ससाई जी के मन में बुद्धीस्ट सेमिनरी स्थापित करने के संकल्प का जन्म हुआ।
बुद्धीस्ट सेमिनरी के नाम के सम्बंध में चिंतन –
बौदध राष्ट्रों मे बौद्ध परंपराओं को आधारशीला मानकर बौदध धम्म की शिक्षा प्रदान की जाती है लेकीन भदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाईजी को भारत में पारंपारीक उपासना पद्धतीपर निर्भर धम्म प्रचार नही करना था बल्की उसके बदले में बाबासाहाब को अपेक्षित बौदध धम्म का प्रचार प्रसार करना था भदन्त सुरई ससाई के मनोपटल पर डॉ बाबासाहाब आंबेडकरजी के धम्म क्रांती और संघर्षशील विचारों का जबरदस्त प्रभाव विचारों का होने के कारण हि उन्होने, बोधीसत्व डॉ बाबासाहाब आंबेडकर बुध्दीस्ट सेमिनरी के स्वरूप में नाम को अंतीम सहमती दी।
धम्म प्रशिक्षण के सम्बंध में:–
संदर्भ- The Buddha and his Dhamma इस ग्रंथ में पृष्ठ क्र. 282 में डॉ बाबासाहाब आंबेडकर जी ने जो रूपरेखा बताई है उसके अनुसार :-
धम्म का काम केवल उपदेश देना ही नही होना चाहीए, बल्की जैसे भी हो इससे मनुष्य के मन में सम्यक धम्माचारी होने की आवश्यकता की भावना उपन्न करनी चाहिए । इसके लिए धम्म को दूसरे भी कार्य करने होते है । धम्म व्दारा मनुष्य को यह शिक्षा दी जाये की असम्यक कर्म क्या है, और जो असम्यक कम्म है उससे मनुष्य ने कैसे दूर रहना चाहिये। * सम्यक कम्म क्या है और जो सम्यक कम्म है उसका वह पालन कैसे करे।
* धम्म के इन दो उद्देश्यों के अलावा, बुध्द ने अन्य उद्देश्यों पर भी जोर दिया जिन्हें वे महत्वपूर्ण समझते थे।
इसी के आधार पर बुध्दिस्ट सेमिनरी मे धम्म वर्ग चलाया जाता है। बडे ब्लैक बोर्ड पर लिखीत स्वरूप में धम्म प्रशिक्षण दिया जाता है और उपासको को नोट्स दिये जाते है ताकी वे उस नोट्स के आधार पर घर जाकर भी चिंतन मनन कर सकें। ठिक उसी प्रकार मन के प्रकृती और स्वभाव का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।
उपासक उपासीकाओं के लिए धम्म वर्ग
हर सप्ताह शनिचर के दिन दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक धम्म वर्ग में धम्म सिखाया जाता है। प्रशिक्षणार्थीयो को धम्म प्रबोधन कर उन्हे धम्म के आचरण करने के लिये सही अर्थ में उन्हे साहसी बनाया जाता है । या पर साहसी इस शब्द का प्रयोग इसलिये किया गया है क्योंकि जहा दुनिया में दुष्कर्म करने वालो को लोग ताकतवर समझते है वहॉ पर सच्चाई इमानदारी से जीवन व्यतीत करना एक तरह का साहस हि है ।
बच्चों के लिये साप्ताहीक धम्म वर्ग
हर रविवार को सबेरे 9:00 बजे से 11:00 बजे तक बच्चों को धम्म में प्रशिक्षीत किया जाता है जिसके चलते उनपर धम्म संस्कार किये जा सकें, इसके के कारण वे आगें चलकर जीवन में एक अच्छे उपासक उपासिका बन सकें।
निवासी धम्म प्रशिक्षण शिबीर का आयोजन–
लगभग 5 से 10 दिनका धम्म का निवासी शिबीर का आयोजन साल में तीन से चार बार किया जाता है। उस शिबीर में, महाराष्ट्र तेलंगाना, तामीलनाडू, कर्नाटक उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश,
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