इंकलाबी कवि श्री. गुरदास राम आलम का जन्म 29 अक्टूबर, 1912 को जिला जालंधर के गांव बुंदाला मंजकी में हुआ था। उनके पिता श्री उमरा राम और माता श्रीमती जियोनी परिवार के लिए बहुत ईमानदारी से मेहनत कर रहे थे। कठिन परिस्थितियों के कारण श्री आलम स्कूल नहीं जा सके। लेकिन वे समाज के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं के बारे में बहुत जागरूक थे। उन्होंने अपने प्रयासों से गुरमिखी लिपि सीखी और बहुत कम उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने भाइयों, बहनों और अपनी पत्नी को पढ़ना सिखाया। उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया और समाज के गरीबों और वंचितों के लिए आवाज उठाई। 1931 में, उन्होंने एक समाचार पत्र “अछूत नजारा” शुरू किया। वह अखबार के संपादक थे। उन्होंने कोइटा (अब पाकिस्तान में) में एक साहित्यिक मंच, पंजाबी दरबार की स्थापना की।
उनकी चार काव्य पुस्तके प्रकाशित हुई।
1948 में वह जिला वाल्मीकि सभा के प्रधान बने। जब पं. जवाहर लाल नेहरू रावलपिंडी आए, तो श्री ने अपनी कविता “मजदूर” सुनाई।
जब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जालंधर आये थे, तो आलम की कविता को दोबारा सुनना चाहा था।
वह खुद्दार इंसान थे। कभी भी माँ, पत्नी और बहिनो को चाकरी करने नहीं भेजा। जब थोड़े बड़े हुए तभी माँ को बोल दिया था की माँ आप घर में बैठ के किसी की दरियाँ बन सकती हो, माँ सूत कात सकती हो, ऐसे मेहनत करके कमा सकती हो। लेकिन किसी की गुलामी नहीं करनी।
गरीब मजदूरों को भी वह यही सन्देश देते थे और पढ़ लिख कर अपनी हालत सुधरने पर जोर देते थे।
वह लेनिन, मार्क्स और डॉ. आंबेडकर से बहुत प्रभावित थे। वह लेनिन, मार्क्स और डॉ. आंबेडकर से बहुत प्रभावित थे और सामाजिक बराबरी की बात करते थे। 27 सितम्बर 1989 को वह जालंधर में हमसे बिछुड़ गए।
उनको लाख लाख नमन!
सुदेश कल्याण
59, गुरु रविदास नगर, जालंधर
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